जिहाद
हलाल मार्केट गैंग: हलाल प्रोडक्ट की आड़ में बाज़ार पर एकाधिकार कर भारत के इस्लामीकरण की क़वायद
– हलाल प्रोडक्ट की आड़ में बाज़ार पर क़ब्ज़े कर भारत के इस्लामीकरण की चल रही है मुहिम– मांसाहारी ही नहीं शाकाहारी चीज़ें भी हैं हलाल सर्टिफाइड, कंपनियां झोंक रही हैं आंखों में धूल– प्रोडक्ट के हलाल प्रमाणीकरण की प्रक्रिया के दौरान मौलवी द्वारा उत्पाद पर फूंक मारने या थूकने का आरोप, अदालत पहुंचा विवाद– क़लमा पढ़कर अलाल्ह के सुपूर्द की गई वस्तु (उत्पाद) एक मुसलमान के लिए तो हलाल है, लेकिन दूसरे धर्म के मानने वालों के लिए यह जूठन जैसा है, जिसे वे अपने भगवान को चढ़ाना तो दूर ख़ुद भी ग्रहण नहीं कर सकते- धर्माचार्य– हलाल प्रोडक्ट हर आम-ओ-ख़ास जगहों से होता हुआ हमारी संसद की कैंटीन और राष्ट्रपति के रसोईघर में भी दाख़िल हो चुका है– हलाल और हलाल प्रमाणीकरण ही नहीं, इससे संबंधित उद्योग और प्रतिष्ठानों से ग़ैर-मुस्लिम और ख़ासतौर से हिन्दुओं की रोज़ी-रोटी के अवसर ख़त्म हो चुके हैं
बहुतों को ये पता ही नहीं है कि हलाल और हराम का संबंध केवल मीट यानि मांस तक सीमित नहीं है.बदलते ज़माने में हलाल और हराम की अवधारणा में खाने-पीने की सभी चीजें मसलन दूध, फल, सब्जी, अनाज, चाय-कॉफ़ी, नमकीन, बिस्कुट, मेवे, मिठाई चॉकलेट, ब्रेड, बर्गर-पिज्जा और पहनने-ओढ़ने, सजने-संवरने की चीजें ही नहीं फ़्लैट, अपार्टमेंट, रेस्टोरेंट, होटल, अस्पताल के साथ-साथ निक़ाह हलाला के लिए पुरुष, ऑनलाइन डेटिंग और एस्कॉर्ट सर्विस भी शामिल है.ये सभी हलाल सर्टिफाइड हैं.मज़हबी ताने-बाने पर खड़ा यह खरबों अरब डॉलर का कारोबार दरअसल, आर्थिक जिहाद है, जिसके ज़रिए ब्रिटेन, अमरीका और यूरोप में अपनी धाक जमाने के बाद हलाल प्रोडक्ट की आड़ में भारतीय बाज़ार पर एकाधिकार कर भारत के इस्लामीकरण की मुहिम चल रही है.स्थिति ये है कि आज भारत की तक़रीबन सभी नामी-गिरामी कंपनियां इसके शिक़ंज़े में आ चुकी हैं और इसका हलाल उत्पाद हर आम-ओ-ख़ास जगहों से होता हुआ भारतीय संसद की कैंटीन और राष्ट्रपति भवन के किचन तक पहुंच गया है.
स्वास्थ्य और विज्ञान के नज़रिए से देखा जाए तो क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, यह वस्तु की गुणवत्ता के आधार पर तय होना चाहिए.वस्तु की क्वालिटी क्या है, दर्ज़ा क्या है, उसके अंदर किन पदार्थों का इस्तेमाल हो रहा है, उसके मानक क्या होने चाहिए, यह निर्णय करने के लिए भारत में संस्थान हैं एफ़एसएसएआई (Food Safety and Standards Authority of India- भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) और एफ़डीए (Food and Drug Administration- खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन).दूसरे शब्दों में, FSSAI और FDA नामक सरकारी संस्थाएं यह तय करने के लिए अधिकृत हैं कि क्या खाना उचित है, और क्या अनुचित है.मगर, इनके साथ ही, अब कुछ प्राइवेट इस्लामी संस्थाएं भी यह काम कर रही हैं.
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि वह देश, जो ख़ुद को सेक्यूलर कहता है और जहां संविधान की दुहाइयां दी जाती हैं वहां, मज़हब के आधार पर कुछ मज़हबी संस्थाएं यह तय कर रही हैं कि भारतीयों के लिए क्या मुनासिब है, और क्या ग़ैर-मुनासिब है, क्या हलाल है और क्या हराम है.मानो यहां भारतीय संविधान का नहीं, बल्कि शरिया क़ानून लागू है, या फिर शरीयत और भारतीय संविधान, दोनों की सामानांतर व्यवस्था चल रही है.
हलाल और हलाल प्रमाणीकरण क्या है?
अल्लाह की तरह हलाल भी एक पूर्व-इस्लामिक (इस्लाम के आगमन से पहले का) अरबी/अरामिक शब्द है, जिसका अर्थ होता ज़ायज़ (Permissible) या उचित, इस्लामी रीति अथवा शरीयत के अनुसार.इसका विपरीत शब्द हराम यानि वर्जित अथवा नाज़ायज़ होता है.
इस्लाम के जानकारों के अनुसार, कुरान की आयतों (खासतौर से सूरह 2:173 और 16:115) और हदीसों में हलाल (मांस के संदर्भ में) के तीन नियम प्रमुखता से बताए गए हैं.पहला, जानवर का हलाल करने वाला व्यक्ति एक वयस्क मुसलमान होना चाहिए.दूसरा, जानवर पर छुरी चलाते वक़्त बिस्मिल्लाह, अल्लाहू अक़बर बोला जाना चाहिए.
तीसरे नियम में यह कहा गया है कि हलाल करते समय जानवर की गर्दन/सिर किबले यानि, मक्का की दिशा में होना चाहिए.
इस प्रकार, उपरोक्त नियमों के पालन से मांस हलाल समझा जाता है, अन्यथा उसे हराम क़रार दिया जाता है.
हलाल प्रक्रिया के दौरान जानवर की सांस की नली, गले की नसों और कैरोटिड धमनियों को काटकर उसका खून बहने के लिए छोड़ दिया जाता है.इससे थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो जाती है.
जानवर को बिना बेहोश किए इस प्रकार मारा जाना ज़बह कहलाता है, जिसमें गले को रेता जाता है और उसका खून बहने के लिए छोड़ दिया जाता है.इससे असहनीय पीड़ा के साथ उसकी तड़प-तड़पकर मौत हो जाती है.पश्चिम के कई देशों में इस तरीक़े को अमानवीय बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया गया है, जबकि भारत में इसको बढ़ावा दिया जा रहा है.
इस्लाम के जानकार प्रोफ़ेसर इमाम-उल-मुंसिफ ने अपने एक लेख में कहा है-
” इस्लाम में हलाल की कोई अहमियत नहीं है.इसके पक्ष में दलील देने वाले सिर्फ़ गुमराह कर रहे हैं बल्कि, मेरे हिसाब से झटके (एक ही वार में गर्दन धड़ से अलग करने का तरीक़ा) से जानवर को मारने की प्रक्रिया कहीं ज़्यादा मानवीय है क्योंकि इसमें जानवर को किसी तरह का ज़्यादा दर्द नहीं होता. ”
जहां तक हलाल प्रमाणीकरण का सवाल है, इसका दायरा हलाल वस्तुओं, साधनों और सेवाओं की तरह बहुत व्यापक हो गया है.मुस्लिम देशों में तो हलाल प्रमाणन का कार्य सरकारी संस्थाओं द्वारा होता है लेकिन, भारत में यह ग़ैर-सरकारी इस्लामी संस्थान करते हैं.इसके तहत यह देखा जाता है कि तैयार की जा रही खाने-पीने की किसी वस्तु में कोई निषिद्ध या हराम वस्तु की मिलावट तो नहीं है.साथ ही, हलाल बताए जा रहे साधन या सेवाएं जैसे होटल, रेस्टोरेंट, आवासीय फ़्लैट-मकान और अस्पताल शरिया के नियमों का पालन करते हैं या नहीं.यदि सब कुछ इस्लाम के मुताबिक़ है, मुसलमानों के उपभोग-उपयोग के योग्य है, तो उसे मान्यता दे दी जाती है, प्रमाणित कर दिया जाता है.इसे हलाल प्रमाणीकरण (Halal Certification) कहते हैं.
बताया जाता है कि इसके तहत मौलवी-उलेमा विभिन्न उत्पादक कंपनियों से अपनी मोटी फ़ीस के साथ-साथ यात्रा का ख़र्च भी वसूलते हैं.वहां जाते हैं और फैक्ट्रियों, निर्माण स्थलों पर तैयार की जा रही वस्तुओं की जांच करते हैं.यदि सब कुछ उनके मानकों के अनुसार है, तो उन पर कुरान की विशेष आयतें पढ़ते हैं, जिसे तस्मिया या शाहदा कहा जाता है.
यह भी कहा जाता है कि ये मौलाना वस्तुओं पर फूंक मारते हैं या थूकते हैं.इसके बाद ही वस्तु हलाल मानी जाती है.हालांकि यह आरोप है लेकिन, कई मुस्लिम मज़हबी नेताओं द्वारा दिए गए भाषणों से यह स्पष्ट पता चलता है कि लार अथवा थूक खाद्य-सामग्री को हलाल के रूप में प्रमाणित करने के लिए एक आवश्यक घटक है.
भारत में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट, जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट्र, हलाल काउंसिल ऑफ़ इंडिया, वैश्विक इस्लामी शरिया सेवाएं आदि संस्थाएं विभिन्न उत्पादों, मांसाहारी और शाकाहारी दोनों, के लिए प्रमाणपत्र जारी करती हैं और इसके लिए उत्पादक को बाक़ायदा उत्पाद के पैकेट, कवर या थैले पर विशेष निशान अंकित करना यानि प्रिंट करना ज़रूरी होता है.इन सब के कारण वस्तु की उत्पादन लागत के साथ बाज़ार में इनकी क़ीमत भी बढ़ जाती है.इसे (अतिरिक्त क़ीमत) उपभोक्ताओं को ही चुकाना होता है.
हलाल प्रमाणित प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है.इनमें ओम इंडस्ट्री, टिफनी फ़ूड, ब्रिटानिया, आईटीसी उत्पाद, नेस्ले, मदर डेयरी, मिल्की मस्ट डेयरी आदि चर्चित नाम हैं.
बाबा रामदेव के पतंजलि और भारतीय निर्माता, वितरक और पिसे हुए मसालों तथा मसालों के मिश्रण के निर्यातक एवरेस्ट मसाला के पास हलाल प्रमाणित उत्पाद हैं.
खासतौर से देसाई उत्पाद, डाबर, अमूल, कृष्णा इंडस्ट्रीज़, क्वालिटी फूड्स, हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, पारले, टाटा कंज्यूमर केमिकल्स, रिलायंस, अडानी कुछ ऐसे ब्रांड हैं, जो अपने उत्पादों में हलाल प्रमाणित मांस का इस्तेमाल करते हैं.
जिन कंपनियों को अपने प्रोडक्ट खाड़ी देशों (Gulf Countries) में निर्यात करना है, वहां के मार्केट में पैर जमाना है, टिके रहना है और भारत के मुसलमानों को खुश करना और उन्हें भी अपना सामान बेचना है, वे सभी हलाल सर्टिफिकेट ले रहे हैं.कई कंपनियां तो पहले ही हलाल सर्टिफाइड हैं, और जो नहीं हैं, वे मुस्लिम संगठनों के दरवाज़ों पर हाथ जोड़े, सिर झुकाए खड़ी हैं.
कुछ मल्टीनेशनल या विदेशी कंपनियों के लिए तो भारत की धरती सिर्फ़ एक बाज़ार है.मगर, वे कंपनियां, जो इसी देश की हैं, जिनका अस्तित्व भी भारत की अर्थव्यवस्था और अंततः इस देश के अस्तित्व के साथ ही जुड़ा हुआ है, उनका भी उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाना है. ये 5 फ़ीसद लोगों के लिए 85 फीसद लोगों (जिनमें वे ख़ुद भी शामिल हैं) के साथ धोखाधड़ी और नाइंसाफ़ी कर रही हैं.
हलालोनॉमिक्स- वैश्विक इस्लामिक उम्माह का हथियार
हालांकि कुरान में हलाल अर्थशास्त्र पर कोई निर्देश या मार्गदर्शन नहीं है, इसमें ‘क्या हलाल है और क्या हराम है’ इस ओर इशारा मिलता है.फिर भी, इस्लामी विद्वानों के मार्गदर्शन और दुनियाभर के इस्लामिक राष्ट्रों के समूह इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation- OIC) की देखरेख में बाक़ायदा हलालोनॉमिक्स (हलाल अर्थशास्त्र) और उस पर आधारित हलाल मार्केट गैंग रूपी विश्वव्यापी संस्थाएं/व्यवस्थाएं क़ायम हैं, जिनका मक़सद हलाल प्रोडक्ट की आड़ में दारुल हर्ब (ग़ैर-इस्लामिक मुल्क) के बाज़ारों पर एकाधिकार/क़ब्ज़ा कर उन्हें दारुल इस्लाम (इस्लामी मुल्क) में परिवर्तित करना है.
हलालोनॉमिक्स कुछ और नहीं बल्कि, OIC द्वारा संचालित एक शुद्ध वैश्विक आर्थिक जिहाद है, जिसमें शरिया आधारित इस्लामिक बैंक, वित्त और हलाल उद्योग शामिल हैं.साथ ही, हलाल प्रमाणीकरण एक हथियार है, जिसका इस्तेमाल कर दुनियाभर में फैले इनके गुर्गे/जिहादी अपने मक़सद को अंजाम दे रहे हैं.
Halal Certification Society of London के द्वारा क़रीब 7 दशक पहले यहां के एक क़स्बे शुरू हुआ हलाल उत्पाद का कारोबार उंचाइयों को छूता हुआ आज बहुत विस्तृत एवं बहुआयामी हो गया है.समर्पित भाव के साथ योजनाबद्ध एवं व्यवस्थित होने के कारण काफ़ी सुदृढ़ स्थिति में है.
जानकारों के अनुसार, हलाल इकॉनोमी को ध्यान में रखते हुए OIC के तहत समय-समय पर वर्ल्ड हलाल रिसर्च और वर्ल्ड हलाल फ़ोरम समिट होते रहते हैं, जिनमें हलाल उद्योग, इस्लामी बैंकिंग और वित्त क्षेत्रों के बीच अधिक से अधिक सहयोग के माध्यम से दुनियाभर में हलाल उत्पादों की स्वीकृति को बढ़ावा देने की रणनीति बनती है.इसके अलावा, हलाल उद्योग में निवेश को बढ़ावा देने के लिए, एसएएमआई (सामाजिक रूप से स्वीकार्य बाज़ार निवेश) हलाल फ़ूड इंडेक्स (शरिया अनुपालन कंपनियों को सूचीबद्ध करने वाला एक शेयर बाज़ार सूचकांक) जैसी सूचकांक श्रृंखला लोकप्रियता प्राप्त कर रही है.ग़ौरतलब है कि इन कोशिशों को पिछले कुछ सालों में ज़बरदस्त समर्थन के साथ-साथ गति भी मिली है.
ज्ञात हो कि कभी इस्लाम ने तलवार के दम पर दुनिया में धर्म परिवर्तन किया था.कई देशों को इस्लामिक देश बनाया.लेकिन, अब ज़माना बदल गया है.अब वही काम आर्थिक जिहाद के ज़रिए करने का सारा षड्यंत्र चल रहा है.इसमें हलाल उद्योग एक बहुत बड़ा हथियार है.
हलाल उद्योग खेत से लेकर उपभोक्ता तक सभी चीज़ों को नियंत्रित करता है, जिसमें उत्पादन और वितरण शामिल हैं.हलाल अर्थव्यवस्था के इस्तेमाल से इस्लामी आर्थिक क्षेत्र को विकसित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है.एचएसबीसी अमानाह, मलेशिया के सीईओ राफ़े हनीफ़ का कहना है-
” अगर हम हलाल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा.पूरे चक्र, पूरी श्रृंखला को उत्पादन से लेकर वित्तपोषण तक हलाल होना चाहिए. ”
हलाल उत्पादों से होने वाले मुनाफ़े का इस्तेमाल अन्य हलाल उत्पादों के ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन और वितरण के साथ-साथ हलाल उद्योग को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए किया जा रहा है.यह सब खासतौर से इस्लामिक बैंकिंग और वित्त प्रणाली के माध्यम से हो रहा है.साथ ही, उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक, दुनियाभर में पूरी श्रृंखला पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने की कोशिशें चल रही हैं.
भारत और दुनिया के कई देशों में हलाल उद्योग बहुत तेज़ी और ख़तरनाक गति से बढ़ रहा है.दुनियाभर में मुस्लिम आबादी क़रीब 1 अरब 80 करोड़ है और हलाल फ़ूड मार्केट वर्तमान में ग्लोबल फ़ूड इंडस्ट्री (वैश्विक खाद्य उद्योग) का जहां 16 फ़ीसदी है वहीं, निकट भविष्य में हलाल फ़ूड प्रोडक्शन (हलाल खाद्य उत्पादन) में वैश्विक व्यापार (Global Trade) की 20 फ़ीसदी तक बढ़ोतरी का अनुमान है.आंकड़ों के अनुसार, भारत में 180 मिलियन यानि क़रीब 18 करोड़ मुसलमान यहां की कुल आबादी का 14 फ़ीसदी हैं, जबकि भारत वर्तमान में OIC के देशों को हलाल मीट का निर्यात करने वाले सबसे बड़े देशों में शुमार है.
हलाल अर्थव्यवस्था के चलते हराम चीजें हलाल हो गईं
ग़ौरतलब है कि हलाल अर्थव्यवस्था का विचार सिर्फ़ मांस से संबंधित कुछ हद तक विनम्र शुरुआत से विकसित हुआ.फिर, इसने कई ज़रूरतों के अनुरूप नियमों को बदलने के लिए प्रेरित किया और परिणामस्वरुप कुछ साल पहले तक हराम मानी जाने वाली चीजें अब हलाल हो चुकी हैं/हलाल के रूप में मान्य हैं.
नमाज़ के लिए बुलावे यानि अज़ान को ही देख लीजिये.अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल हराम माना जाता था.लेकिन, जब यह समझ आया कि लाउडस्पीकर इस्लाम के प्रसार में एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, तो यह स्वीकार्य ही नहीं, अनिवार्य हो गया.इसी प्रकार, कास्मेटिक उत्पाद का उपयोग हराम की जगह हलाल हो गया है.अब हलाल सौन्दर्य प्रसाधन उपलब्ध हैं.मोबाइल, टेलीविजन, फ़िल्मों और जींस वगैरह की तो बात ही करना बेमानी होगी.
इस्लाम और मुस्लिम देशों के प्रभाव या दबाव के चलते दुनिया के अधिकांश हिस्सों की तरह भारत में भी आज ऐसी बहुत सारी चीज़ें हैं, जो हलाल के दायरे में हैं, और हलाल उद्योग का संवर्धन और विस्तार कर रही हैं.
मांसाहार से शाकाहार तक
मटन, चिकन और बिरयानी ही नहीं हल्दीराम के सभी प्रसिद्ध शाकाहारी नमकीन/नाश्ते और बाबा रामदेव के आयुर्वेद आधारित तमाम प्रोडक्ट हलाल प्रमाणित हैं.इनमें सूखे मेवे, मिठाई, चॉकलेट भी शामिल हैं.
चीनी, गुड़, नमक और सत्तू भी हलाल
गोबिंद प्रसाद की एक बड़ी मशहूर कविता है.वह कुछ यूं है कि राजा ने कहा- रात है.मंत्री ने कहा- रात है.फिर, सभासदों ने कहा कि रात है.ये आज सुबह-सुबह की बात है…
इसी प्रकार, पहले कहा जाता था- आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता.फिर, नए अवतरित हुए एक ज्ञानदाता ज़ोमैटो (एक ऑनलाइन फ़ूड कंपनी) स्वामी ने हमें सिखाया कि खाने का कोई मज़हब नहीं होता बल्कि, खाना अपने आप में मज़हब होता है.
बड़ी हैरानी होती है.क्यों कोई इस स्वामी जी के भूत की दाढ़ी पकड़कर नहीं पूछता कि फिर, चीनी, गुड़, नमक और सत्तू को हलाल करने की ज़रूरत क्या है?
हलाल प्रमाणित करने के बाद चीनी, गुड़, नमक और सत्तू क्यों इस्लामी बन गए हैं?
सत्तू के पैकेट पर हलाल मार्क (स्रोत: सोशल मीडिया) |
दरअसल, ग़लती हमारी ही है कि हम किसी ऐरे-ग़ैरे की आंय-बांय भी सुन लेते हैं और पलटकर ज़वाब नहीं देते.यही नहीं, उसका विरोध करने के बजाय उसे और मालामाल करते जा रहे हैं.आख़िर, कब तक? कब तक हम दिन को रात और रात को दिन कहते रहेंगें?
खाद्य पदार्थ से सौन्दर्य प्रसाधन तक
अनाज, तेल, साबुन, शेम्पू, डिटर्जेंट, टूथपेस्ट, काजल (आई लाइनर), नेल पॉलिश, लिपस्टिक और अन्य सौन्दर्य प्रसाधन अब हलाल प्रमाणीकरण के दायरे में हैं.
दवाएं भी हलाल
ग़ौरतलब है कि वर्तमान (परिवर्तित) इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक़ शराब, स्पिरिट, जिलेटिन, कुछ मांस (जैसे सूअर और कुछ अन्य जानवरों के मांस) और विभिन्न जीव-जंतुओं से प्राप्त कई अन्य उत्पाद से मिलकर बनी चीजें, चाहे वे कितनी ही स्वाथ्यवर्धक हों, दवाईयां ही क्यों न हों, हराम हैं, और इन्हें हलाल प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता.
यह विज्ञान को न सिर्फ़ 500 साल पीछे धकेलने जैसा है बल्कि, इंसानी ज़िंदगी के साथ समझौता भी है.मगर, जिन उत्पादकों को खाड़ी/मुस्लिम देशों में व्यापार करना है या फिर भारतीय मुसलमानों को अपना प्रोडक्ट बेचना है, उन्हें यह समझौता करना पड़ता है.नतीज़तन, आज यूनानी, आयुर्वेदिक एवं हर्बल उत्पादों के साथ-साथ कुछ होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयां भी हलाल प्रमाणन के दायरे में हैं.शहद भी हलाल प्रमाणित हो चुका है.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की खाद्य श्रृंखलाएं
मेकडोनल्ड्स बर्गर और डोमिनोज पिज्जा ही नहीं अन्य लोकप्रिय खाद्य पदार्थों के अलावा बड़े शहरों के अधिकांश रेस्टोरेंट (बहुराष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों के रेस्टोरेंट) भी हलाल प्रमाणित हैं.लगभग सभी हवाई अड्डों पर उपलब्ध भोजन हलाल प्रमाणित है.
हलाल अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स
हलाल अर्थव्यवस्था के रंग-बिरंगे रूप और इसके विस्तार का सबसे अच्छा उदाहरण केरल के कोच्चि स्थित हलाल अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स है.यह एक ऐसा हलाल प्रमाणित अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स है, जिसे पूरी तरह शरिया नियमों के तहत बनाया गया है.यहां परिसर में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग स्वीमिंग पूल हैं.घरों में मक्का की दिशा में बने नमाज़ के अलग-अलग कमरे, गुस्लखाने हैं.
कमरों में नमाज़ के लिए सचेत करने वाली घड़ियों के साथ-साथ उनमें नमाज़ प्रसारित करने वाले उपकरण भी लगे हैं.
ग़ौरतलब है कि यह सिर्फ़ केरल तक ही अब सीमित नहीं है, पता चलता है कि भारत के दूसरे कई बड़े शहरों जैसे मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, हैदराबाद और बंगलौर में भी ऐसे रिहायशी मकान, अपार्टमेंट आदि बनाए जा रहे हैं.
हलाल अस्पताल
इस हिन्दू बहुल देश में ग्लोबल हेल्थ सिटी नामक एक हलाल प्रमाणित अस्पताल भी है.अपने आप में अनोखा यह अस्पताल तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित है.
ग्लोबल हेल्थ सिटी हॉस्पिटल की ख़ासियत ये है कि यह इस्लाम के अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता है.शरिया के नियमों के अनुसार स्वच्छता, आहार और अन्य सभी प्रकार की ज़रूरतों का ख़ास ख़याल रखता है.यही कारण है कि यहां भारत के साथ-साथ दुनिया के 50 से ज़्यादा मुस्लिम देशों के लोग यहां इलाज़ कराने आते हैं.
हलाल डेटिंग वेबसाइट
इंटरनेट पर देखें तो अनेक मुस्लिम डेटिंग साइटें मिलती हैं, जो सिंगल मुस्लिम पुरुष के लिए महिला और महिलाओं के पुरुष से दोस्ती, प्यार और शादी के लिए एक दूसरे से जोड़ने का दावा करती हैं, उन्हें क़रीब आने और मिलने की व्यवस्था देती हैं.
हलाल सर्टिफाइड डेटिंग वेबसाइट |
इन्हें खंगालने पर पता चलता है कि इनमें ज़्यादातर एस्कॉर्ट सर्विस से संबंधित हैं.मगर, कई हलाल सर्टिफाइड हैं और बाक़ायदा हलाला निक़ाह के लिए पुरुष भी मुहैया कराती हैं.
भारत की सेक्यूलर सरकार दे रही है हलाल प्रोडक्ट को बढ़ावा
आज केंद्र में मोदी सरकार, जिसे भगवा सरकार कहा जाता है दरअसल, यह न तो भगवा है और न ही सेक्यूलर.यह भी कांग्रेस की पिछली देशविरोधी और हिन्दू विरोधी सरकारों की तरह इस्लाम समर्थक है.इसे बाक़ी क़ौमों की परवाह बिल्कुल भी नहीं है.वे क्या खाना चाहते हैं, उनके धर्म-मज़हब में क्या ज़ायज़-नाज़ायज़ है, इससे सरकार को कोई लेना-देना नहीं है.यही कारण है कि दूसरों पर भी वही चीज़ें थोपी जा रही हैं, जो इस्लाम और शरिया के हिसाब से ज़ायज़ है.हलाल प्रमाणित है.
हिन्दू धर्माचार्यों का कहना है कि किसी वस्तु के हलाल प्रमाणीकरण के दौरान मौलवी द्वारा क़लमा पढ़ा जाता है.यानि वह वस्तु अल्लाह को चढ़ाई जाती है.ऐसे में, वह वस्तु मुसलमानों के लिए तो हलाल है लेकिन, दूसरे धर्म के मानने वाले लोगों के लिए छोड़ा गया भोजन यानि जूठन है, जिसे वे अपने भगवान को चढ़ाना तो दूर, ख़ुद भी ग्रहण नहीं कर सकते.
फिर भी, हलाल प्रोडक्ट सभी (सभी धर्म-पंथ के लोगों) पर लादा जा रहा है, ताकि हलाल इकोनॉमी का ज़्यादा से ज़्यादा विस्तार हो.
40 हज़ार करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था वाली भारत सरकार की एयर इंडिया, रेलवे की आईआरसीटीसी, भारतीय पर्यटन मंडल की आईटीडीसी केवल हलाल मीट और अन्य उत्पाद परोसने वालों को ही ठेके देते हैं.भारत सरकार के इस इस्लामी रूख़ के कारण ट्रेनों में यात्रियों को ही नहीं बल्कि, भारतीय लोकतंत्र के सबसे पवित्र स्थान संसद और राष्ट्रपति भवन (इनके कैंटीन-किचन) में भी केवल हलाल प्रमाणित भोजन और दूसरे खाद्य पदार्थ परोसे जाते हैं.
सरकार की देखादेखी BCCI भी शरीयत की राह पर चल पड़ी है.कुछ महीने पहले वह खिलाड़ियों के लिए जारी भोजन के मेन्यू से पोर्क और बीफ़ को बाहर कर हलाल मीट और अन्य हलाल प्रमाणित प्रोडक्ट परोसने को मंज़ूरी दे चुकी है.
हलाल अर्थव्यवस्था छीन रही है हिन्दुओं का व्यापार और नौकरियां
सरकार चाहे कोई भी हो, किसी की (किसी भी विचारधारा की) भी हो, आज़ादी के बाद से ही इसके द्वारा अपनाई जा रही मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण आज देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह हलाल अर्थव्यवस्था के रंग में रंग चुकी है.हालत ये है कि हिन्दू व्यापारियों-व्यसायियों के लिए न तो व्यापार-व्यवसाय बचा है और न ही इनसे जुड़े काम में हिन्दुओं के लिए नौकरियां ही शेष हैं.
कहते हैं कि आंखें खुली हों और दिमाग चौकन्ना हो, तो कुछ भी रहस्य नहीं रहता.इसलिए देखें तो पता चलता है कि सरकार द्वारा संचालित संस्थानों और यहां तक कि निजी व्यवसायों की भी मांग है कि केवल हलाल मांस की आपूर्ति की जाए.ऐसे में, हिन्दू कसाई (जिनके उत्पाद ही नहीं, उनकी उपस्थिति भी हराम हैं) मांस उद्योग-व्यवसाय से बाहर हो रहे हैं, जबकि मुस्लिम कसाई लाभान्वित हो रहे हैं.
सूअर का मांस इस्लाम में प्रतिबंधित है, इसलिए सूअर के मांस को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के मांस का व्यवसाय अल्पसंख्यक (?) मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जा रहा है.
आंकड़े बता रहे हैं कि सरकार की मुस्लिमपरस्ती और हलाल मांस पर ज़ोर देने की ग़लत नीतियों के कारण 23 हज़ार, 646 करोड़ का वार्षिक मांस निर्यात और 40 हज़ार करोड़ का घरेलू चटाई खपत उद्योग दोनों, मुसलमानों के हाथों में जा रहा है और ग़रीब तथा पिछड़े हिन्दू कसाईयों की रोज़ी-रोटी तबाह हो चुकी है.
ये समझना भी कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि एक रेस्तरां को हलाल के अनुरूप प्रमाणित करना और किसी उत्पाद को हलाल प्रमाणित करना बेशक़ दो अलग-अलग मुद्दे हैं पर, दोनों का मक़सद एक ही है- हलाल अर्थव्यवस्था को मज़बूती और विस्तार देना.मसलन मांस के हलाल सर्टिफिकेशन के लिए केवल मांस के स्रोत और प्रसंस्करण (Processing) को शरीअत के अनुसार होना चाहिए.वहीं, हलाल प्रमाणित रेस्तरां शराब या स्पिरिट या उससे संबंधित उत्पादों (व्युत्पन्न उत्पादों) के साथ कुछ भी परोस नहीं सकता.यानि यहां इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं में केवल मांस ही नहीं बल्कि, तेल, मसाले, खाद्य रंग, चावल, अनाज जैसी अन्य चीज़ें और वे पैकेट और बोरियां भी, जिनमें वे रखी/पैक की जाती हैं, वे सभी हलाल प्रमाणित होनी चाहिए.
अब जहां सब कुछ सिर्फ़ और सिर्फ़ हलाल (हलाल ही हलाल) होगा यानि कुछ और नहीं होगा, वहां ग़ैर-मुस्लिम यानि हिन्दू या कोई भी और क्या करेगा? किसी को कोई रोज़गार या नौकरी नहीं मिलने वाली है.
ऐसे में, ये बिल्कुल स्पष्ट है कि इस हलाल प्रमाणीकरण ने मुस्लिम समुदाय के लिए न केवल मांस उद्योग बल्कि, अन्य व्यवसायों को भी अपने क़ब्ज़े में लेने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
हलाल अर्थव्यवस्था से आतंकवाद का पोषण
हलाल प्रमाणीकरण के ज़रिए दुनिया की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित किया जा रहा है.इसे समझने के लिए इतना ही जानना काफ़ी है कि पिछले 50 सालों में 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था इस्लामी देशों ने निर्माण की है.यह भारतीय अर्थव्यवस्था से तीन गुना ज़्यादा है.ऐसे में, यदि इसकी दो-चार फ़ीसदी नहीं, सिर्फ़ एक फ़ीसदी राशि (धन) भी आतंकवाद के पालन-पोषण पर ख़र्च हुआ है/हो रहा हो, तो समझ लीजिये पूरी दुनिया बारूद के ढ़ेर पर खड़ी है.हलाल प्रमाणित वस्तुओं को ख़रीदकर हम अपनी ही तबाही के लिए फंडिंग कर रहे हैं.
दुनिया की कई ख़ुफ़िया एजेंसियों का कहना है कि हलाल अर्थव्यवस्था का पैसा इस्लामी वर्चस्व स्थापित करने और आतंकवाद के पालन-पोषण के लिए किया जाता है.हलाल ‘मदर ऑफ़ जिहाद’ है.
ग्रैंड मुफ़्ती ऑफ़ बोस्निया, मौलाना मुस्तफ़ा सेरीक ने आईएसआईएस और तालिबानी जिहादियों से कहा था-
” आप अपने मुसलमान भाईयों का खून क्यों बहा रहे हैं? हलाल इकोनॉमी के ज़रिए पूरी दुनिया पर आप अहकाम-ए-इलाही और निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा (इस्लाम की सत्ता) स्थापित कर सकते हैं.एक बार वे (ग़ैर-मुसलमान) हमारे ग़ुलाम बन जाएं, तब हम उनकी सारी दौलत लूट लेंगें.दुनियाभर के फाइव स्टार होटलों में अंतर्राष्ट्रीय परिषद आयोजित कर, वहां के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर अगर अपने हलाल सर्टिफिकेट ले लिया, तो पूरी दुनिया आपके प्रोडक्ट खरीदेगी.आइए, ऐसा कर उन्हें हलाल सर्टिफिकेट के लिए राज़ी या फिर मज़बूर करते हैं.दुनिया को दारुल इस्लाम बनाने के लिए ही हलाल इकोनॉमी की रचना की गई है. ”
दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, यहीं भारत की बात करते हैं.जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, जिसके एक गुट (जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम) ने भारत विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन किया था, वह (जमीयत उलेमा-ए-हिन्द) आज भारत के मज़हबी और राजनितिक हल्क़ों में एक ताक़तवर इस्लामी तंज़ीम है.इसका जमीयत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट नामक एक महतवपूर्ण हलाल प्रमाणन निकाय भी है.
इस JuH (जमीयत उलेमा-ए-हिन्द) ने उत्तरप्रदेश के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के हत्यारों/जिहादियों का केस लड़ने का ऐलान किया था.इसके अलावा, अतीत से लेकर वर्तमान तक इसका रिकॉर्ड देखें, तो पता चलता है कि 7/11 के मुंबई रेल बम विस्फोट, मालेगांव बम विस्फोट, पुणे के जर्मन बेकरी बम विस्फोट, मुंबई पर 26/11 के हमले, मुंबई के जवेरी बाज़ार में बम विस्फोटों की श्रृंखला, दिल्ली के जामा मस्जिद में विस्फोट, अहमदाबाद के कर्णावती बम विस्फोट के आरोपी/जिहादियों को इसने कानूनी मदद दी है.आंकड़ों के अनुसार, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द आज भी देशविरोधी गतिविधियों, दंगों और विभिन्न हिंसक वारदातों के 700 आरोपी/जिहादियों की तरफ़ से देशभर में केस लड़ रहा है, उन पर पैसा पानी की तरह बहा रहा है.मगर, यह पैसा इसे कौन उपलब्ध करा रहा है? ज़ाहिर है कि यह पैसा हलाल प्रमाणन शुल्क का पैसा है, जो क़ाफ़िरों (ख़ासतौर से हिन्दुओं) की जेब से निकलता है.
क़ाफ़िरों का पैसा क़ाफ़िरों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहा है!
बहरहाल, अब भी वक़्त है.हलाल मार्केट गैंग के मंसूबों को समझने की ज़रूरत है.ज़रूरी क़दम जल्द उठाने की ज़रूरत है, वर्ना बहुत देर हो जाएगी.
जिन्होंने वक़्त गंवा दिया, वे मिट गए, इतिहास इसका साक्षी है.
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