साई को मंदिर की क्या ज़रूरत ?
हिन्दू देवी-देवताओं के समकक्ष दिखाए जाते साईं |
मग़र जब ये साबित हो चुका है कि साईं हिन्दू (पढ़िए साईं हिन्दू थे या मुसलमान ?-https://www.khulizuban.com/2020/09/Sai-baba-afghanistan-ke-pindari-lutere-the.html) नहीं बल्कि मुसलमान थे फ़िर क्यों उन्हें मंदिरों में स्थापित करने की धृष्टता की जा रही है,ये एक बड़ा सवाल है.
ख़ुद को यवनी कहनेवाला और सदा अल्लाह मालिक़ बोलनेवाला साईं |
जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीक़े से उन्हें हिन्दू देवी-देवताओं के समकक्ष खड़ा कर महिमामंडित किया जा रहा है.इसके कारण निम्नलिखित हैं :-
भगवान साबित करने की क़वायद
दरअसल,ये सारी क़वायद साईं को भगवान बनाने की है.यदि वे भगवान प्रमाणित हो जाते हैं तो उनपर चढ़ा फ़क़ीरी का चोला उतर जाएगा और वो एक वैकल्पिक साधन की बजाय मूल आवश्यकता बन सकेंगें.यहाँ वैकल्पिक साधन और मूल आवश्यकता से मेरा आशय ये है कि साईं अबतक सिर्फ़ एक चमत्कारी फ़क़ीर के रूप में ही जाने जाते हैं इसलिए फटेहाल और मुसीबतों के मारे लोग जब ईश्वर,ख़ुदा या गॉड से निराश हो जाते जाते हैं तो आज़माने के लिए साईं की शरण में जाकर निरर्थक प्रयास करते हैं.इसका साफ़ मतलब ये है कि साईं के पास लोग पहले नहीं बल्कि सबसे आख़िर में पहुँचते हैं.पहले वो अपने मज़हब के दायरे में रहकर अपने भगवानों/ख़ुदा के सानिध्य में ही तमाम संभावनाएं तलाशते हैं.
उल्लेखनीय है कि आज़ के दौर में जब सामाजिक तथा सांस्कृतिक तानाबाना ध्वस्त होता जा रहा है और लोग हर क़ीमत पर अपनी ख्वाहिशें पूरी करने को आमादा हैं तो ऐसे में परम्पराएं टूटेंगीं ही.विचारशून्यता आएगी और आस्था भी चूर-चूर होगी.
साईं बाबा के साथ तो कोई बंधन भी नहीं है.वो चाहे नशेड़ी हो,मांसाहारी हो या फ़िर चोर-लुटेरा हो,चढ़ावे से से वास्ता है,साईं सभी पर मेहरबान हैं.
मग़र साईं भगवान बनें तो कैसे? बिना मंदिर ये मुमक़िन नहीं.साथ ही उनके नाम पर व्रत और त्यौहार भी ज़रूरी हैं उनकी ठरकी छवि को ढंकने के लिए जो उनके संत अथवा फ़क़ीर होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है.ऐसे में साईं ट्रस्ट व उसके आनुषंगिक संगठन जीतोड़ परिश्रम कर रहे हैं तथा पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं.तिड़कमें रची जा रही हैं.
भगवान के रूप पेश किये जाते साईं |
बाबा बाजार बनेगा धर्म का धंधा
बाबाओं के दिन लद गए लगते हैं.कमाई बढ़ने की बजाय घटती ही जा रही है.ऊपर से खर्चे बहुत हैं.सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ मीडिया तक सबके मुंह गाँधी (करेंसी-नोट) लग चुके हैं.शायद ही कोई छोटे गाँधी से ही संतुष्ट हो पाता है वर्ना तो बड़ी-बड़ी दुकानें सजाकर बैठे व्यापारियों को गांधियों का ढ़ेर चाहिए.ये तो लूट है,जो जितना लूट सके.
जब बाबाओं का भविष्य अंधकारमय है तो अवश्य ही ये बड़ी चिंता का विषय है.यदि साईं डूबे तो अरबों-ख़रबों का साम्राज्य भी डूब सकता है.विजय माल्या की तरह.साईं के फ़िर से किसी टूटी-फूटी मस्ज़िद में वापस लौटने का ख़तरा सता रहा है.लेकिन,साईं को यदि भगवान बनाकर मंदिरों में बिठा दिया जाता है तो ना सिर्फ़ कमाई बढ़ेगी बल्कि साईं और उनका धर्म सदाबहार हो जाएंगें.
दौलत और शोहरत की बुलंदियों पर साईं |
रोज़गार के अवसर
समय के साथ-साथ साईं ट्रस्ट और उससे जुड़े आनुषंगिक संगठनों में लोगों की संख्या भी बढ़ती चली जा रही है पर बाबा बाज़ार पर पड़ती मार के कारण आय-व्यय में अंतर काम होता जा रहा है.मग़र साईं जब भगवान बनकर मंदिरों मैं बैठ जाएंगें तो उनकी कीर्ति पताका दूर-दूर तक फहरेगी,जिसके फलस्वरूप ‘साईं धर्म’ चुंबक की माफ़िक़ पैसा हासिल करने लगेगा.जब पैसा बढ़ेगा तो शाखाओं का विस्तार होगा और फ़िर रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगें,जिसमें सभी खप जाएंगें.किचकिच ख़त्म हो जाएगी.
शिरडी साईं मंदिर में चढ़ावे में मिले नोट अलग़ करते कर्मचारी |
दलीलों का सार
उपरोक्त दलीलों से ये साफ़ हो जाता है कि साईं का मसला कोई धार्मिक मसला नहीं बल्कि व्यापारिक है.ये बदलते वक़्त की मांग है जो हावी है.मग़र इसका बड़ा ख़ामियाज़ा सनातन हिन्दू धर्म को भुगतना होगा.साफ़ शब्दों में इसे कहें तो मंदिरों में साईं की स्थापना के फलस्वरूप साईं धर्म के रूप में एक अलग़ धर्म का जन्म होगा,जो कहीं आसमान से नहीं टपकेगा और ना ही कहीं ज़मीन से ही फटकर निकलेगा.सनातन हिन्दू धर्म के दो फाड़ होंगें और वह समाप्त हो जाएगा.
सनातन हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्ह |
ये कोई बहुत कठिन भी नहीं है क्योंकि साईं समर्थकों को ये बख़ूबी पता है कि हिन्दू थोड़ा वाकयुद्ध करेंगें,हवा में लाठियां और त्रिशूल भी भांजेंगें ज़ल्द ही फ़िर ठंडे पड़ जाएंगें.
साईं समर्थक सूर्योदय और सूर्यास्त की तरह ही इस बात से भी पूर्ण अवगत हैं कि धर्म से मुसलमान रहे साईं को यदि इस्लाम से जोड़ा और उन्हें,ख़ुदा तो बहुत बड़ी चीज़ है,पैग़म्बर भी बताया तो उनका सर्वनाश निश्चित है.एक दिन भी नहीं गुज़रेगा,सर तन से ज़ुदा हो जाएंगें और साईं ट्रस्ट तथा दुनियाभर में फ़ैले उसके तमाम आनुषंगिक संगठन जलाकर राख़ कर दिए जाएंगें.साईं का नामोनिशान मिट जाएगा.
कमोबेश यही स्थिति अन्य अल्पसंख्यक धर्मों-सिख,जैन व बौद्ध आदि में भी है.इनके साथ भी धृष्टता का प्रतिफल ये होगा कि साईं समर्थकों को नाकों चने चबाने पड़ेंगें और अंततः उनका देशनिकाला भी बहुत संभव है.अतएव,साईं के चेलों ने बहुत आसान शिकार चुना है.
चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
जहालत रोग था जो दिल के अंदर,
वही मज़हब हमारा हो गया है।
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