कानून और अदालत
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की तरह काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद और श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद भी 'उपासना स्थल अधिनियम' के दायरे में नहीं आते
– उपासना स्थल अधिनियम के दायरे से बाहर हैं काशी और मथुरा की ज्ञानवापी-शाही ईदगाह मस्जिदें– मुसलमानों को फ़ायदा पहुंचाने के मक़सद से बने कांग्रेसी कानून ने मुसलमानों को ठगा– Places of Worship Act, 1991 रूपी क़िले की धाराएं 3 और 4 रूपी दीवारों में दो खिड़कियां खुली रखी गई हैं– हिन्दू विरोधी कानून ही मंदिर बनवाएगा- जानकारों की राय
जिस उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की लोग दुहाई देते नहीं थकते, जिसे कवच बताते हुए विवादित स्थलों/इमारतों जैसे काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को अभेद्य क़िला बताते हैं, उसकी हक़ीक़त कुछ और ही है.कवच या ढाल बनना तो दूर, वह तो इनसे पल्ला ही झाड़ लेता है.उससे, इनका कोई वास्ता ही नज़र नहीं आता.इसके प्रावधानों से ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ाहिर हो जाता है कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, दोनों ही ‘उपासना स्थल अधिनियम’ के दायरे में नहीं हैं, उसके अधिकार-क्षेत्र या न्याय-सीमा के बाहर हैं.ऐसे में, जो लोग दिल में वहम पाले बैठे हैं, उन्हें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की तरह इन विवादित स्थलों पर भी फ़ैसला हिन्दुओं के पक्ष में ही हो सकता है.
उपासना स्थल अधिनियम वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद ही नहीं ऐसी तमाम इमारतों/स्थलों की हिफाज़त नहीं करता क्योंकि ये उसके अधिकार या न्यायिक क्षेत्र में ही नहीं है.ऐसे में, फ़ैसला आज हो या कल या फिर 10-20 साल बाद मगर, होगा वही, जो राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में हो चुका है.
विवादित स्थलों से मुस्लिम पक्ष को अपना दावा छोड़ना होगा.अगर वे ख़ुद ऐसा नहीं करते, तो कानून अपना काम करेगा.अयोध्या मामले की तरह उन्हें बेदख़ल कर अदालत उनके क़ब्ज़े की ज़मीने हिन्दुओं को सौंप देगी, उनका मालिकाना हक़ हिन्दुओं के हवाले/सुपुर्द कर देगी.
क्या है उपासना स्थल अधिनियम?
उपासना स्थल अधिनियम (विशेष उपबंध) या यथास्थिति उपासना स्थल अधिनियम (Places of Worship Act ) वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया एक विशेष कानून है, जो किसी भी पूजा (उपासना) स्थल की वस्तुस्थिति को उसी अवस्था में रोक देता है या बनाए रखता है, जिस अवस्था में वह 15 अगस्त 1947 में थी.यानि यह कानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में बरकरार रहेगा.यथास्थिति बहाल रहेगी.
उपासना स्थल अधिनियम की शेष (एक धारा-8 निरस्त होने के बाद) कुल 7 धाराओं में दो धाराएं (Sections) यानि धारा-3 और धारा-4 सबसे अहम हैं, जो पूरे कानून को परिभाषित करती हैं, उसकी व्याख्या करती हैं.
दरअसल, धारा-3 और धारा-4 वे धाराएं हैं, जो पूजा स्थल कानून की दशा और दिशा को दर्शाती हैं.ये इसके क्षेत्राधिकार अथवा न्यायिक सीमा को भी बतलाती हैं.
धार्मिक स्थल कानून की इन्हीं धाराओं में कानून निर्माताओं ने खेल खेला है.दरअसल, कानून के प्रावधानों के बीच उन्होंने कुछ ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया है कि जिससे इस कानून के दो तोड़ यानि इसकी काट (ज़वाबी दांव) तैयार हो गए हैं.
कानून के विशेषज्ञों के अनुसार, उपासना स्थल कानून रूपी क़िले की धाराएं 3 और 4 रूपी दीवारों में दो खिड़कियां खुली रखी गई हैं, जिससे होकर बड़े आराम से इस कानून के दायरे से बाहर निकला जा सकता है.इन हालात में कानून का वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है.
खिड़की नंबर एक
खेल दरअसल, धारा-3 में ही शुरू हो जाता है.यही कारण है कि इस कानून के समर्थक इस धारा का कम ही ज़िक्र करते हैं, या फिर वे धारा-3 की पूरी व्याख्या किए बग़ैर फ़ौरन धारा-4 में पहुंच जाते हैं.मगर, समस्या ये है कि वे वहां भी फंस जाते हैं और सवालों के ज़वाब नहीं दे पाते हैं.
धारा (Section)- 3
Bar of Conversion of places of worship-” No person shall convert any place of worship of any religious denomination or any section thereof into a place of worship of a different section of the same religious denomination or of a different religious denomination or any section thereof. ”
इसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार है-
उपासना स्थलों के संपरिवर्तन की व्याख्या-” कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग के किसी उपासना स्थल का उसी धार्मिक संप्रदाय के भिन्न अनुभाग के या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग के उपासना स्थल में संपरिवर्तन नहीं करेगा. ”
विश्लेषण
No person यानि कोई भी व्यक्ति…..संपरिवर्तन नहीं करेगा.यानि यहां केवल व्यक्ति की बात हो रही है.यहां कहा जा रहा है कि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकेगा.मगर, यह काम State यानि राज्य यानि सरकार ज़रूर कर सकती है.
हम इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं-
प्रश्न 1- क्या कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति (दूसरे व्यक्ति) को बंधक बना सकता है?
उत्तर- नहीं, कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को बंधक नहीं बना सकता.
प्रश्न 2- क्या कोई State किसी व्यक्ति को बंधक बना सकता है?
उत्तर- अवश्य, कोई State किसी व्यक्ति को उसके जुर्म की सज़ा के तौर पर उसे बंधक बना सकता है, यानि जेल भेज सकता है.
जेल में लोग बंधक ही होते हैं, आज़ाद नहीं.
प्रश्न 3- क्या कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को मार सकता है?
उत्तर- नहीं, कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को नहीं मार सकता.
प्रश्न 4- क्या कोई State किसी व्यक्ति को मार सकता है?
उत्तर- अवश्य, State किसी व्यक्ति को उसके जुर्म की सज़ा के तौर पर उसे फांसी पर लटकाकर मार सकता है.
फांसी की सज़ा में लोगों को मारा ही जाता है, बख्शा नहीं जाता.
निष्कर्ष
इस प्रकार, यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि State किसी धार्मिक स्थल में संपरिवर्तन कर सकता है.यानि कानून द्वारा (अदालत में) यदि यह साबित हो जाए कि कोई धार्मिक स्थल नाजायज़ क़ब्ज़े में है, यानि वह किसी ऐसे धर्म-संप्रदाय के क़ब्ज़े में है, जो उसका असली हक़दार नहीं है (उसने किसी और की अमानत पर नाजायज़ क़ब्ज़ा कर रखा है), तो State उसे हटाकर वहां असली हक़दार को हक़/क़ब्ज़ा दिलवा सकता है.
खिड़की नंबर दो
धारा-4 की उपधारा (Sub-Section) 3 के खंड-अ में भी खेल है, चाल चली गई है.मगर, अधिकांश लोग या तो समझ नहीं पाते हैं, इसका सही अर्थ नहीं निकाल पाते हैं या फिर जानबूझकर ग़लत रूप में पढ़ते हैं और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं.इसे समझने की ज़रूरत है.
धारा-4 की उपधारा-3
यह अंग्रेजी में इस प्रकार है-
Nothing contained in sub-section (1) and sub-section (2) shall apply to-” (A) Any place of worship referred to in the said sub-sections which is an ancient and historical monuments or an archaeological site or remains covered by the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 (24 of 1958) or any other law for the time being in force. ”
इसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार है-
धारा-4 की उपधारा-1 और उपधारा-2 की कोई बात (प्रावधान) निम्नलिखित पर लागू नहीं होगी-” (अ) उक्त उपधाराओं में निर्दिष्ट कोई पूजा स्थल, जो प्राचीन और ऐतिहासिक महत्त्व का/स्मारक है या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (1958 का 24) या तत्समय प्रवृत्त किसी और कानून का तहत आने वाला कोई प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या कोई पुरातत्वीय स्थल का अवशेष है. ”
विश्लेषण
यहां ग़ौर करें- Any place of worship…..which is an ancient and historical monuments or an archaeological site or remains यानि वह पूजा स्थल, जो प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थल/स्मारक है या (अंग्रेजी का or जिसका शाब्दिक अर्थ/कानून की भाषा में अर्थ होता है अथवा, या, व, दो चीज़ों में से कोई एक) पुरातात्विक अवशेष है/पुरातत्व विभाग के अधीन है, यानि दोनों प्रकार में से किसी एक प्रकार (दोनों तरह का होना ज़रूरी नहीं है) का है, उस पर धारा-4 की उपधाराएं-1 और 2 लागू नहीं होंगीं, यानि उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होगा.
दूसरे शब्दों में, वह पूजा स्थल, जो या तो (OR not AND) प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल/स्मारक है या फिर पुरातात्विक अवशेष है/पुरातत्व विभाग के अधीन है, यानि दोनों में से किसी भी तरह का है, तो वहां पूजा स्थल कानून लागू नहीं होगा, निष्क्रिय हो जाएगा.
निष्कर्ष
केवल एक शब्द ‘OR’ यानि ‘या’ का सारा खेल है यहां.एक संयोजक/समुच्चयबोधक (Conjunction), जो दो शब्दों को जोड़ता है.जैसे Do or Die- करो या मरो.यानि दोनों में से कोई एक– दोनों नहीं जैसा कि And (और) लगा देने से हो सकता है.ऐसे ही, यहां एक ही तरह की इमारतों/स्थलों की बात हो रही है, जो दो भिन्न परिस्थितियों में हैं.
ज्ञात हो कि कोई प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल या स्मारक दो प्रकार का हो सकता है- एक सामान्य और दूसरा पुरातात्विक.सामान्य स्थल/स्मारक वह होता है, जो किसी व्यक्ति या समुदाय या धर्म-संप्रदाय के स्वामित्व/अधिकार क्षेत्र में होता है.परंतु, पुरातात्विक स्थल या स्मारक राष्ट्रीय संपत्ति/धरोहर होता है.वह पुरातत्व विभाग के अधीन होता है, और वही उसकी देखरेख करता है.
यहां इन दोनों की ही बात हो रही है लेकिन, दोनों में से कोई भी एक परिस्थिति है, तो भी वहां उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होगा, ऐसा बहुत स्पष्ट कहा गया है.मगर, 32 साल बाद (1991 से लेकर अब अक) भी लोग Or और And के बीच का भेद नहीं समझ पाए हैं.क्या वाकई नहीं समझ पाए हैं?
बहरहाल, यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद या मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद ही नहीं बल्कि, कोई भी धार्मिक स्थल, जो विवादित है वह (पर्याप्त साक्ष्यों और कारणों की बदौलत) अदालत में सुने जाने योग्य है.अदालतें उन पर निर्णय कर सकती हैं क्योंकि उपासना स्थल कानून कहीं भी आड़े नहीं आता है.
सवालों के घेरे में है उपासना स्थल अधिनियम
उपासना स्थल कानून साल 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने बनाया था.इसका उद्देश्य था हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों के धार्मिक अधिकारों को सीमित कर मुसलमानों को ख़ुश करना.मगर, जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अस्तित्व में आया, यह उसी के मार्ग में स्वयं बाधा है, ये साबित हो चुका है, शीर्ष अदालत द्वारा सिर्फ़ इसकी पुष्टि बाक़ी है.
अंतर्विरोधों से ग्रसित यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.ख़ासतौर से, जिन लोगों ने ऐसा विचित्र कार्य/विधि निर्माण किया, जानबूझकर किया या उनसे भूल हुई, यह भी एक बड़ा सवाल है, जो इसके ख़ात्मे तक बना रहेगा.
उपासना स्थल अधिनियम को ख़त्म करने की दिशा में क़दम उठ भी गए हैं.मशहूर वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका में इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए है.
एडवोकेट उपाध्याय का कहना है कि केंद्र सरकार के पास इस कानून को बनाने का अधिकार ही नहीं है.उनके अनुसार, कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है, जबकि कांग्रेस सरकार ने यह कानून बनाते समय राज्यों (ख़ासतौर से उत्तरप्रदेश) की बिगडती कानून व्यवस्था का हवाला दिया था, जो कि ग़लत है.
उपासना स्थल अधिनियम विरोधी एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.इसे लखनऊ स्थित विश्व भद्रा पुजारी पुरोहित महासंघ की ओर से दायर की गई है.
अब स्थिति ये है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी नोटिस के ज़वाब में केंद्र सरकार के पास कहने को कुछ भी नहीं है.
कई और भी हैं विवादित स्थल
देशभर में कुल कितने विवादित स्थल हैं, इसका कोई प्रामाणिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है मगर, जानकारी के अनुसार इनकी संख्या सैकड़ों या शायद हज़ारों में हो सकती है.प्रसिद्ध इतिहासकार सीता राम गोयल और अन्य लेखकों अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाशी और राम स्वरूप की एक साझा किताब ‘हिन्दू टेम्पल: व्हाट हैपंड टू देम’ (Hindu Temples: What Happened To Them) में 1800 से ज़्यादा ऐसी मस्जिदों और मज़ारों-दरगाहों का ज़िक्र है, जिन्हें हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर, उन्हीं की सामग्री का इस्तेमाल कर बनाया गया बताया गया है.इस किताब में क़ुतुब मीनार से लेकर मथुरा-काशी के विवादित ढ़ांचे, पिंजौर गार्डन और अन्य कई इमारतों-स्थलों का वर्णन मिलता है.
अवैध क़ब्ज़े और विवादित स्थलों के संदर्भ में पत्रकार और इतिहास लेखक पीएन ओक की लिखी ‘ताजमहल एक शिव मंदिर’ और ‘फ़तेहपुर सिकरी एक हिन्दू नगर’ नामक किताबों की चर्चा अदालतों में भी होती रहती है.
जानकारों के मुताबिक़, देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहां धार्मिक स्थलों पर विवाद नहीं है.अकेली देश की राजधानी दिल्ली में 72 स्थलों पर विवाद चल रहा है.अन्य क्षेत्रों में जौनपुर की अटाला मस्जिद, मालदा की अदीना मस्जिद, विदिशा की बीजा मंडल मस्जिद, पाटन की जामी मस्जिद, धार की कमल मौला मस्जिद और अहमदाबाद की जामा मस्जिद के मामले भी गरमा रहे हैं.
विवादित स्थल |
उपासना स्थल अधिनियम की पोल खुल गई है और नकली सेक्यूलरों द्वारा फैलाये गए भ्रमजाल से भी लोग बाहर आ रहे हैं.जिसका जो हक़ है, वह उसे मिलना चाहिए.इसके लिए सरकारों को तो आगे आना ही होगा, अदालतों को भी मामलों की त्वरित सुनवाई और निर्णय पर ध्यान देना होगा, एक स्पष्ट संदेश देकर भ्रम दूर करना होगा क्योंकि वे ही जनता की आख़िरी उम्मीद और रक्षक हैं.
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