– अधिकांश किटी पार्टियों में ली जाती है जिगोलो की सेवा
– मिडल क्लास आंटियों को भी लग चुकी है जिगोलो की लत
– अमीर घराने की महिलाएं लगाती हैं जिगोलो की बोली
– जिगोलो क़ारोबार बड़े शहरों के बाद अब छोटे शहरों में पनप रहा है
भारत में जिगोलो का धंधा या ज़िगोलो बाज़ार बढ़ता ही जा रहा है.पिछले दो-तीन दशकों में इसके विस्तार पर नज़र डालें तो पता चलता है कि ये बड़ी तेज़ी से फ़ैला है और फ़ैलता ही जा रहा है.यहां फ़िलहाल ये कितना चलन में है,ये जानकर आश्चर्य होगा कि जितना हम सोचते हैं,उससे ये कहीं व्यापक है.
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फ़ैल रहे जिगोलो बाज़ार का सांकेतिक चित्र |
कुछ निज़ी संस्थानों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मर्दों की ज़िस्मफ़रोशी यानि ज़ोगोलो कारोबार देश की राजधानी दिल्ली सहित मुंबई,कोलकाता,बंगलौर,जयपुर व गुडगांव में जितनी तेज़ी से पैर पसार रहा है आने वाले समय में यह,फीमेल एस्कॉर्ट यानि स्त्री वेश्या के धंधे को भी पीछे छोड़ देगा तथा ये शहर ज़िगोलो हब बन जाएंगें.दरअसल,ये गन्दा है पर कमाई वाला धंधा है.बिना निवेश या मामूली निवेश वाला व्यवसाय-व्यापार है.इसमें आम के आम हैं और गुठलियों के दाम जैसा काम.कुछ ऐसा कि काम-क्रीडा के हुनरमंद हर रात पैसों में तुले जाते हैं.
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ज़िगोलो पार्टी का दृश्य |
मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़,दिल्ली और मुंबई के कई पॉश इलाक़ों की मार्केट में मर्दों के बाज़ार रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक सजते हैं जहां कुछ घंटों के लिए ज़िगोलो की बुकिंग 1800 से 3 हज़ार रुपए और फुल नाइट के लिए 8 हज़ार तक में डील होती है.यहीं नहीं गठीले और सिक्स पैक्स-ऐब्स वाले मर्दों की क़ीमत 15 हज़ार से शुरू होती है जिसमें दो तरह के रेट होते हैं.सिंगल क्लाइंट सर्विस यानि अकेली महिला की सेवा के लिए अलग जबकि महिलाओं के ग्रूप के लिए अलग और मुहमांगी क़ीमत मिलती है.
बताया जाता है कि दिल्ली के सरोजिनी नगर,लाजपत नगर,पालिका मार्केट और कमला नगर समेत कई इलाक़ों में यह धंधा पुलिस की नाक के नीचे धड़ल्ले से चल रहा है.इनके अलावा,राजधानी के ही साउथ एक्सटेंशन,जेएनयू रोड़,आईएनए,अंसल प्लाजा,क्नॉट प्लेस,जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर जैसे प्रमुख बाज़ारों की सड़कों पर देर रात माहौल ऐसा हो जाता है कि वहां से शरीफ़ मर्दों का गुज़रना मुश्किल हो जाता है.
वहीं मुंबई के मालाबार हिल्स में बाक़ायदा ज़िगोलो मार्केट लगता है.इसके अलावा डिस्को,कॉफ़ी हाउस और पब आदि में भी आजकल यह क़ारोबार ख़ूब फल फूल रहा है.
ज्ञात हो कि दिन के उजाले में ख़ुदको सभ्य समाज की बताने वाली कई अमीर घराने की महिलाएं यहां पुरुषों की बोली लगाती हैं.वे उन्हें किराये पर लेकर अपनी बेशक़ीमती गाड़ियों में गंतव्य स्थानों पर ले जाती हैं और किटी पार्टी के नाम पर ज़िगोलो पार्टी करती हैं.
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ज़िगोलो की डील के सांकेतिक चित्र |
दरअसल,भारत में ज़िगोलो यानि पुरूष वेश्या (अधेड़/वृद्ध स्त्रियों पर आश्रित पुरूष ) जिन्हें मेल एस्कॉर्ट भी कहते हैं,पहले महानगरों में ही इक्के-दुक्के पाए जाते थे.धीरे-धीरे ये फ़ैलते गए जिससे एक नया पेशा उभरकर सामने आया-पुरूष वेश्यावृत्ति का पेशा,जिसमें व्यक्तिगत संपर्कों और धीरे-धीरे फ़ैलने की बजाय ज़ल्द विस्तृत रूप इख़्तियार कर चा जाने की ललक में लोगों को इंटरनेट ने पंख लगा दिए.फ़िर,पेशा व्यापार बन गया.मगर व्यापार को बाज़ार चाहिए और बाज़ार को माल और ख़रीदार,जिसमें हमारे देश की मीडिया की महारत हासिल है.हमारी मीडिया ने इसे प्लेटफ़ॉर्म दिया और कुकुरमुत्तों की तरह फ़ैली एनजीओ ने वैचारिक समर्थन देकर इसे कुलीन परिवारों से मध्यवर्गीय तबकों तक पहुंचा दिया.इसका नतीज़ा ये हुआ कि ज़िगोलो का क़ारोबार अब सिर्फ़ महानगरों तक सीमित नहीं रहा बल्कि अन्य उन छोटे-बड़े शहरों तक पहुंच चुका तथा अपना नेटवर्क बढ़ा रहा है जहां अय्याश मिज़ाज़ व्यवसायी और कामकाज़ी लोग रहा करते हैं.
विभिन्न एजेंसियों की शोध टीम का नेतृत्व कर चुके एक स्वतंत्र एवं खोज़ी पत्रकार एम दिनाकरन ने ज़िगोलो बाज़ार के विषय पर पर गहरा अध्ययन किया है.उन्होंने बताया-
” शहरी महिलाओं की होने वाली पार्टियों में अधिकांश पार्टियां जिन्हें हम किटी पार्टी ही समझते हैं वो,कोई किटी पार्टी नहीं बल्कि नए ज़माने की एक ऐसी पार्टी है जिसमें औरतों के साथ-साथ कम से कम एक जवान लड़के का होना ज़रूरी है.जी हां,तीन-चार शादीशुदा आंटियों के बीच किराए का एक लड़का.दरअसल,ये एक ज़िगोलो पार्टी होती है जिसमें किराये पर लाया गया लड़का एक ऐसा ज़िगोलो होता है जो पार्टी के दौरान वहां मौज़ूद आंटियों का दिल बहलाता है.उन्हें ख़ुश करता है और जिसके बदले उसे मिलते हैं हज़ारों रूपये बतौर मेहनताना जो,तय घंटे से अधिक हो जाने पर दुगनी फ़ीस के रूप में बढ़ जाया करता है.”
दिनाकरन के मुताबिक़,ऐसी ज़िगोलो पार्टियां अब सिर्फ़ हाई प्रोफ़ाइल सोसायटी तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि ये वहां भी जा पहुंची हैं जिन्हें हम मिडल क्लास घरानों के नाम से जानते हैं.वे बताते हैं-
” मिडल क्लास घरानों की आंटियां भी अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से इस क़दर उब चुकी लगती हैं कि समाज के बनाए नियम-क़ानून तोड़कर उन्हें कुछ नया करने से कोई गुरेज़ नहीं है.जी हां,पहले हाई प्रोफाइल आंटियों को लगने वाली ज़िगोलो की लत अब मिडल क्लास घरों तक पहुंच चुकी है.
पार्टी जैसे-जैसे परवान चढ़ती है इसके सबूत मिलने लगते हैं.शराब के सुरूर में आंटियां एक दूसरे की मौज़ूदगी भूलाकर ज़िगोलो के ज़िस्म में अपनी जवानी ढूंढने लगती हैं.ये सिलसिला तबतक चलता रहता है जबतक ज़िस्म से खिलवाड़ में इनका दिल भर नहीं जाता.
ज़िगोलो को दिया पैसा वसूलना इन आंटियों को बख़ूबी आता है चाहे इसके लिए सारी हदों को पार ही क्यों न करना पड़े.वैसे भी तपिश और बढ़ जाती है चंद बूंदों के बाद.
सच में,इसमें हैरान होने जैसी कोई बात नहीं क्योंकि ये धंधा अब नया नहीं रहा बड़े शहरों के लिए.छोटे शहरों में सर्वेक्षण अभी हुआ नहीं है इसलिए वहां की आंटियों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट के इस ज़माने में सभी एक दूसरे से जुड़े नज़र आते हैं.”
दिनाकरन बताते हैं कि ज़िगोलो के इस क़ारोबार में सबसे बड़े मददगार हैं कुकुरमुत्तों की तरह उग आए छोटे-बड़े क्लब,जिनसे जुड़ने का मत्लब होता है ख़ुद में आधुनिक व प्रतिष्ठित होने का अहसास.स्टेटस सिंबल बन चुके ये क्लब मर्दों की जिस्मफरोशी यानि ज़िगोलो बाज़ार को बढ़ा रहे हैं.वे आगे बताते हैं-
” शहरों के मिडल क्लास क्लबों में ज़िगोलो पार्टियों का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है और इसकी सबसे ज़्यादा शौक़ीन हैं अधेड़ उम्र की वो शादीशुदा आंटियां जिनका दिल अपने पतियों से भर चुका होता है.पति अपने काम में फंसकर नोट छापने की मशीन बन जाते हैं और ये आंटियां उन पैसों को लुटाने की मशीन.उम्र के इस पड़ाव में उन्हें ज़रूरत महसूस होती है एक ऐसे जवान साथी की जो उन्हें जवान होने का अहसास एक बार फ़िर से दिला दे.ज़िगोलो ऐसी आंटियों की पहली पसंद होते हैं.
दरअसल,ज़िगोलो मेल प्रोस्टीट्यूशन का दूसरा नाम है जहां लड़कों के ज़िस्म की क़ीमत चुकाकर हाईप्रोफाइल औरतें उसका इस्तेमाल मौज़-मस्ती के लिए करती हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह क़ीमत चुकाकर कॉल गर्ल का इस्तेमाल मर्द किया करते थे.
ये धंधा इस क़दर बढ़ चुका है कि बाक़ायदा एक नेटवर्क के ज़रिए लड़कों को ज़िगोलो बनाया जा रहा है और इनसे ज़िगोलो का काम करवाने से पहले औरतों को ख़ुश करने की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि पैसा लुटाने वाली आंटियों के बीच जाने से पहले ये उनके तौर-तरीक़े,बोली,उठने-बैठने का तरीक़ा और उन्हें ख़ुश करने का हुनर अच्छी तरह समझ जाएं.ये धंधा शहरों में अब सचमुच क़ारोबार की शक्ल ले चुका है.”
अपने पेशे में तथाकथित 4 वर्षों के अनुभवप्राप्त एक ज़िगोलो ने बताया कि एमटेक की पढ़ाई के बाद वह एक अच्छी नौकरी करता था.लेकिन,एक लड़की के चक्कर में उसे ज़ेल हो गई थी और फ़िर उसकी ज़िन्दगी पटरी से उतर गई,वह एक बोनाफाइड व सम्मानित युवा से ज़िगोलो बन गया.मगर,उसने अपना नाम व पहचान गुप्त रखने की शर्त पर ही अपना अनुभव साझा किया तो हमने भी उसका पालन किया है और उदाहरणस्वरूप उसका एक काल्पनिक नाम रखा है-समझौता कुमार(हालात से समझौता करने वाला).बहरहाल,उसका जो अनुभव है वह बहुत चौंकाने वाला है,उसपर यक़ीन तो नहीं होता परंतु जो कुछ भी उसने बताया,इसप्रकार है-
” मुश्किल दिनों में साउथ दिल्ली के एक पार्क में मुझे एक बुज़ुर्ग व्यक्ति मिले.पता नहीं कैसे,पर वे एक नज़र में ही भांप गए कि मैं दुखी व किसी मुश्किल में हूं.उन्होंने मेरा ढाढ़स बंधाया और मदद का भरोसा देकर अपने घर ले गए.वहां उन्होंने मुझे अच्छा खाना खिलाया और थोड़े पैसे देकर कहा कि मैं जबतक चाहूं उनके घर में रह सकता हूं,एक रिश्तेदार की तरह.पड़ोसियों की नज़र में एक दूर का रिश्तेदार.इस तरह,मुझे अब भोजन और ज़ेबख़र्च के साथ रहने को घर भी मिल गया था.एक पल के लिए वे मुझे देवदूत लगे और मैंने उन्हें सम्मानपूर्वक अंकल कहकर संबोधित किया.लेकिन,मैं उस वक़्त हैरान और परेशान हो गया जब उन्होंने,इन सबके एवज़ में ख़ुश करने यानि शारीरिक सम्बन्ध बनाने की शर्त रख दी.मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था और न ही निर्णय लेने क्षमता ही बची थी,इसलिए मुझे अंकल की बात माननी पड़ी और वह किया जो कुछ उन्होंने कहा.ऐसा मैंने पहली बार किया था लेकिन इसके बाद तो यह मेरे लिए रोज़मर्रा की बात हो गई थी.
मैंने इतना ज़रूर सुना था कि मर्द अपने सेक्स की भूख मिटाने हिज़ड़ों के पास जाते हैं और हिज़ड़े उन्हें संतुष्ट करते हैं.मगर ये बात मुझे बाद में समझ आयी कि पैसे कमाने के लिए हिज़ड़े जो कुछ मर्दों से अपने साथ कराते हैं वही काम अंकल क्यों अपना ख़र्च कर मुझसे करा रहे थे,जबकि न तो उनमें मर्दों जैसी चाह थी और ना वे हिज़ड़ा ही थे.”
समझौता कुमार आगे कहता है-
” इस तरह कुछ महीने बीत गए.रोज़-रोज़ अंकल और उनकी बुज़ूर्ग मंडली को ख़ुश करते हुए मैं उब चुका था.मगर एक दिन मेरा एक महिला से संपर्क हुआ और जब मैं उनके घर गया तो अच्छा लगा.मैंने देखा कि वह अधेड़ थीं मगर सुंदर थीं और साथ ही सेक्स के ज्ञान में निपुण भी.वास्तव में,उनके साथ मज़ा आया और ऐसा लगा कि अंकल की कृत्रिम दुनिया से निकलकर मैं फ़िर से प्राकृतिक जीवन में लौट आया हूं.उन्होंने न सिर्फ़ अच्छे पैसे दिए बल्कि जो तकनीक दी वो मुझे एक अच्छे ज़िगोलो बनने व अंकल की दुनिया से दूर जाने में सहायक सिद्ध हुई.उनके संपर्कों के ज़रिए मुझे बाज़ार मिला जहां मेरी आज डिमांड है और अच्छी कमाई भी.आज़ मैं प्रोफेशनल हूं और समर्थ भी,तो उन्हीं की बदौलत.दरअसल,वे मेरी गुरू हैं और उनका मैं सम्मान करता हूं.”
इस तरह हमने देखा कि समझौता कुमार उर्फ़ ज़िगोलो नामक प्राणी की घुसपैठ घरों तक हो चुकी है,जिन्हें ग्राहक ढूंढने कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पड़ोस में ही अंकल-आंटी उन्हें हाथोंहाथ लेने को तैयार हैं.इसके अलावा भी जो दुकानें अथवा बाज़ार आदि की बात है तो उन्हें बड़े और बेहतर विकल्प के रूप में समझा जा सकता है.
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ज़िगोलो के इंतज़ार में महिला(सांकेतिक) |
अब पूरी तरह पेशेवर हो चुके समझौता कुमार ने बताया-
” अब मैं बहुत व्यस्त रहने लगा था.शायद एक्ज़ाम की तैयारी के दिनों से भी ज़्यादा.रोज़ रात नई औरतें या औरतों के ग्रूप में नए अंदाज़ और एनर्जी के साथ अपनी क़ाबिलियत साबित करना आसान नहीं था.कहीं प्रशंसा मिली तो कहीं बेइज्ज़ती भी हुई मगर कमाई बढ़ती गई.
कुछ एजेंसियों से जुड़ने के बाद से अब मुझे वीवीआइपी की भी सेवा के मौक़े मिलते हैं जैसे दूतावासों और कॉर्पोरेट जगत के लोगों को सेवा देने का काम.इनमें औरतें होती हैं और मर्द भी.कपल्स भी.इनसे पहले परिचय करवाया जाता है उसके बाद तय स्थान व समय पर सप्लाई दी जाती है.ऐसे ग्राहक हमें ज़्यादातर होटलों या फ़ार्महाउसों में बुलाते हैं मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जो सरकारी या निज़ी आवास के लिए भी डिमांड करते हैं.समय कोई भी हो सकता है-रात भी,दिन भी.लेकिन मनमाफ़िक सेवा से ख़ुश ये लोग अलग से टीप भी देते हैं.एजेंसियां 20 पर्सेंट कमीशन लेती हैं लेकिन हमारी फ़ीस भी बहुत अच्छी होती है.
अकेली महिलाओं की सिंगल सर्विस डिमांड कम ही आती है,शायद सुरक्षा को लेकर.ज़्यादातर कॉल पार्टियों के लिए आते हैं-शादीशुदा अधेड़ महिलाओं की पार्टियां जिनमें कुछ जवान औरतें भी शामिल होती हैं.ऊँचे घराने की महिलाओं की पार्टियों में आमतौर पर समस्या नहीं आती लेकिन मिडल क्लास महिलाओं की ज़्यादातर पार्टियों में तय संख्या से ज़्यादा महिलाएं पहुंच जाती हैं जिन्हें संभालना मुश्किल होता है.कुछ नखरे वाली औरतें भी होती हैं जो ज़्यादा वक़्त तक उलझाए रखती हैं और इससे ग्रूप की दूसरी सदस्यों को पूरा वक़्त नहीं मिलता तो वो एक्स्ट्रा टाइम की डिमांड रख देती हैं.मगर पेमेंट के वक़्त मसला खड़ा हो जाता है और वे आपस में झगड़ने लगती हैं.ऐसे में हमें डर सताता रहता है कि कोई हमारी शिक़ायत(झूठी) न कर दे.दरअसल,शिकायतों के कारण हमारी रेटिंग पर फर्क़ पड़ता जो रेपो(साख) के लिए ठीक नहीं होती.एक्स्ट्रा कमाई तो इनसे शायद ही कभी होती है.
सबसे मुश्किल और ज़ोखिम भरा काम होता है कपल्स की डिमांड पर उनके घर जाना.दरअसल,ये वे बेमेल जोड़े होते हैं जो एक दूसरे को ख़ुश नहीं कर पाते लेकिन एकसाथ रहते हैं और एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं.इसके अलावा,वैसे सक्षम दंपत्ति भी हमें बुलाते हैं जो पश्चिमी सभ्यता को पसंद करते हैं और जिन्हें अलग-अलग देह में अलग-अलग स्वाद की अनुभूति करने की लत लग चुकी है,वैसे ही जैसे घर का ख़ाना खाने के बाद बाज़ार का भी स्वाद लोग लेते हैं.अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले इनमें कुछ ऐसे मशहूर लोग भी हैं जो टीवी चैनलों पर अक्सर भारत विरोधी बयान देते देखे जाते हैं.बड़ी-बड़ी बातें करने वाले मगर मत्लबी और नाइंसाफ़ लोग.
ये दरअसल,तय वक़्त से ज़्यादा वक़्त तक हमें रोके रखते हैं,ज़्यादा शराब पीने का दबाव बनाते हैं और आख़िर में पेमेंट को लेकर अक्सर मोलभाव करते हैं.कई बार तो ये नशे में ज़िन्दगी बर्बाद की धमकियां भी देते हैं.इनसे डर लगता है और यही कारण है कि अब मैं कपल्स के कॉल को अक्सर इग्नोर (अनदेखा,टालना ) कर देता हूं.
जब पहली बार मुझे एक नए शादीशुदा जोड़े को उनके हनीमून पर अटेंड करने का मौक़ा मिला तो मुझे अपनी आंखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था और मन में सवाल उठ रहा था कि आख़िर ये लोग शादियां ही क्यों करते हैं जब इन्हें मुझ जैसों की सेवा की ज़रूरत है.पर,उन्हें सन्तुष्ट करने के बाद समझ आया कि ये समथिंग डिफरेंट (कुछ हटके) करने और एक्स्ट्रा एंजॉयमेंट (अतिरिक्त आनद) के लिए अनुभव प्राप्त करने का प्रयास है.बहुत ही विचित्र.घृणास्पद.दरअसल,मुझे ये बिल्कुल भी ज़ायज़ नहीं लगता जबकि मैं ख़ुद नाज़ायज़ हो गया हूं.
कल्पना से भी परे,आज़ मेरे पास वो सबकुछ है जो शायद उस सम्मानित जॉब में हासिल नहीं कर सकता था. लेकिन,मैं इस हृदयहीन दुनिया में,जो पैसों पर चलती है,बिल्कुल अकेला हूं.अब मुझे ख़ुद से नफ़रत हो गई है.एक जिंदा लाश हूं और मेरा ज़मीर भी मर चुका है.पता नहीं कौन सी शक्ति मुझे थामे हुए है! “
उल्लेखनीय है कि पतन की नई परंपरा रूपी ज़िगोलो प्रणाली भारत में अन्य सामजिक प्रदूषण की तरह पश्चिमी सभ्यता से आयी जहां नंगापन सभ्यता का हिस्सा है.पश्चिमी सभ्यता के क़दमों पर चलते हुए भारत में भी युवा वर्ग इस काम को करने लगा क्योंकि उसे इस काम में ज्यादा मेहनत नज़र नहीं आता और कमाई चकाचक.लेकिन जब कड़वी सच्चाई सामने आती है तो पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है.कई लोगों से शारीरिक संबंध बनाने के चक्कर में एड्स और अन्य एसटीडी (यौन संक्रमित रोग ) इन्हें हो जाता है और ज़हन्नुम बन चुकी ज़िन्दगी में हर पल सामने मौत खड़ी नज़र आती है.सिर्फ़ वही नहीं,वो तमाम लोग जो उसके संपर्क में आ चुके होते हैं,जबतक समझ पाते हैं तबतक बहुत देर हो चुकी होती है.
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एड्स से पीड़ित व्यक्ति का सांकेतिक दृश्य |
मगर दुर्भाग्य ये है कि देश की बिकी हुई मीडिया और शासन तंत्र का लिव इन रिलेशनशिप,समलैंगिकता और वेश्यावृत्ति को वैचारिक समर्थन प्राप्त है.377 और 497 आदि धाराएं पहले ही समाप्त की जा चुकी हैं.ज़िन्दगी को व्यापार बनाकर देखने वाले तथाकथित समाजसेवी और बुद्धिजीवि मानव स्वतंत्रता का उद्घोष करते नज़र आते हैं और इस आड़ में अपने छुपे अनैतिक मंतव्यों को पूरा करने की सोच रखते हैं.क्या हम इतने लाचार और कमज़ोर हैं जो ऐसे दुराचारियों के दबाव में आकर अपनी गौरवमयी परंपराओं और संस्कृति को तोड़ देंगें?
ध्यान रहे,हमें स्वयं कठोर निर्णय लेकर अपना विरोध दर्ज़ कराना होगा ताकि सरकार और अदालत को इस मुद्दे पर मज़बूरन उचित क़दम उठाना पड़े.
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
ऐ काफ़िले वालों,तुम इतना भी नहीं समझे,
लूटा है तुम्हें रहज़न ने,रहबर के इशारे पर |
और साथ ही…
जिसके क़िरदार पर शैतान भी शर्मिंदा है,
वो भी आए हैं यहां करने नसीहत हमको |
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