पीएनबी (पंजाब नेशनल बैंक) में अपने मामा मेहुल चौकसी के साथ मिलकर 14 हज़ार करोड़ रूपये से ज्यादा का घोटाला करने वाले हीरा क़ारोबारी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण मामले में भारत को एक बड़ी जीत मिली है.भारत के भगोड़े नीरव मोदी को लंदन की एक अदालत ने तगड़ा झटका देते हुए उसके भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है.कोर्ट ने भारत में न्याय नहीं मिलने और सेहत के आधार पर नीरव मोदी की दलीलों को सिरे से खारिज़ कर कर दिया.अदालत ने माना कि भारत में नीरव मोदी की कई मामलों में ज़वाबदेही है और यह तभी संभव है जब वह भारत की अदालतों में पेश होगा.ऐसे में,उसकी भारत वापसी न्यायोचित है.उसे भारत भेज दिया जाना चाहिए.
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भगोड़ा नीरव मोदी |
इस तरह नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का रास्ता फ़िलहाल साफ़ हो गया है.कुल 28 दिनों के भीतर उसकी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी.ब्रिटेन की होम मिनिस्टर प्रीति पटेल के हस्ताक्षर करते ही उसका प्रत्यर्पण भी हो जाएगा.
तीन विकल्प अब भी शेष
मगर ज़ानकार बताते हैं कि नीरव मोदी के पास अब भी तीन विकल्प शेष हैं जिनका प्रयोग कर वह फ़िलहाल बच सकता है.वह स्थानीय कोर्ट के खिलाफ़ हाईकोर्ट और फ़िर सुप्रीम कोर्ट जा सकता है.
इस दोनों विकल्पों के अलावा नीरव मोदी के पास तीसरा विकल्प भी खुला है.वह विकल्प है मानवाधिकारों का जिसके तहत वह ब्रिटेन की सरकार से शरण मांग सकता है.
नीरव की कुंडली में भारतीय ज़ेल का योग
भले ही भगोड़े नीरव मोदी के पास मामले को लटकाने,अटकाने और भटकाने के बहाने अभी बाक़ी हैं लेकिन सच्चाई ये है कि हर सूरत में अब उसका बचना बहुत मुश्किल है.क़ानून के ज़ानकार और जांच एजेंसियों के अधिकारी बताते हैं कि नीरव की कुंडली में भारतीय ज़ेल का योग है.वह कहीं भी चला जाए,कुछ भी कर ले, वेस्टमिंस्टर की कोर्ट का ये फ़ैसला उसपर भारी पड़ेगा.कुछ समय ज़रूर लग सकता है लेकिन नीरव को भारत आना ही पड़ेगा.सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वक़ील मुकुल रोहतगी कहते हैं-
” कोर्ट की अपनी प्रक्रिया होती है.उसमें समय लगता है.उसके पूरा होते ही नीरव का प्रत्यर्पण हो जाएगा.इसमें अधिकतम 2 साल लगने की संभावना है मगर उसका भारत आना तय है. “
सीबीआई और ईडी के अधिकारियों ने बताया-
” हम दोनों ने इस केस में बहुत मेहनत की है.बहुत सारे सबूत इकट्ठे किए हैं जिन्हें नीरव मोदी के वक़ील ने ग़लत ठहराने की नाक़ाम कोशिश की है.इलेक्ट्रौनिक सबूत हैं जिनमें इमेल अहम हैं.उन्हें झूठलाया नहीं जा सकता.केस मज़बूत है तभी मजिस्ट्रेट की कोर्ट का फ़ैसला भरता के पक्ष में आया है.”
प्रत्यर्पण से बचने के लिए नया पैंतरा
उल्लेखनीय है कि भारत में बैंक घोटाले और मनी लौन्डरिंग के केस का वांछित 49 वर्षीय नीरव मोदी दक्षिण-पश्चिम लंदन स्थित वॉन्ड्सवर्थ ज़ेल में बंद है.उसे भारत लाने की कोशिशें चल रही हैं.इसी बीच,ब्रिटेन से भारत प्रत्यर्पित होने से बचने के लिए उसने एक नया पैंतरा अपनाया.उसके वक़ील बैरिस्टर क्लेयर मोंटगॉमरी ने वहां की वेस्टमिंस्टर कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल कर राहत की मांग कर दी.वक़ील ने अदालत में कहा-
” मेरे मुवक्किल नीरव मोदी की हालत ख़राब है.वह असांजे जैसी ही मानसिक परिस्थितियों से गुज़र रहा है.इसलिए असांजे की तरह ही उसे राहत दी जाए.उसे भारत प्रत्यर्पित न किया जाए.इस मामले को खारिज़ कर दिया जाए.”
ग़ौरतलब है कि जासूसी के आरोपों में लंदन में गिरफ़्तार ऑस्ट्रेलियाई नागरिक और विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन पॉल असांजे को अमरीका प्रत्यर्पित किया जाना था.मगर वहां की डिस्ट्रिक्ट जज वैनेसा बारातिज़र ने उसका अमेरिका के लिए प्रत्यर्पण इस आधार पर खारिज़ कर दिया था कि उसका मानसिक स्वास्थ्य ख़राब है और अमरीकी ज़ेल में दबाव के हालात में वह ख़ुदकुशी कर सकता है.
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अभिनेत्री पामेला एंडरसन के साथ विकिलिक्स के संस्थापक जूलियन असांजे |
नीरव मोदी इसका फ़ायदा उठाना चाहता था.वह असांजे की तरह पेश हुआ.ऑनलाइन सुनवाई के दौरान देखा गया कि उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और उसने एक ढीला सा ब्लेज़र पहना हुआ था.
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पाग़ल की एक्टिंग करता नीरव मोदी |
सुनवाई के दौरान नीरव के वक़ील ने कहा कि भारत की ज़ेलों की हालत ठीक नहीं है.लंबे वक़्त से क़ैद के कारण असांजे जैसी स्थिति में जा पहुंचा नीरव यदि भारत भेजा जाता है तो अनहोनी संभावित है.
ये दलील दी गई कि भारत की न्यायिक प्रक्रिया बहुत लचर है और फैसलों में देरी होती है.
ये भी कहा गया कि भारत में उसके साथ राजनीतिक साज़िश की आशंका है.
साथ ही,बहस में हिस्सा ले रही मैल्मक नामक एक महिला(क़ानूनी प्रक्रिया का हिस्सा) ने भी नीरव के मानसिक स्वास्थ्य की किसी स्वतंत्र मनोचिकित्सक से जांच कराने और भारत में उसकी उचित देखभाल के लिए ज़रूरी भरोसा हासिल होने तक के लिए सुनवाई रोकने की मांग की.
इसप्रकार,अदालत को प्रभावित करने की पुरज़ोर कोशिशें हुईं,सारे हथकंडे अपनाये गए.
मगर अभियोजन पक्ष ने अपनी दलीलें रखी तो लगा जैसे वहां का माहौल ही बदल गया.सारे झूठ बेनक़ाब हो गए.
भारत सरकार का पक्ष रख रही क्राउन प्रौसिक्युशन सर्विस (सीपीएस) की बैरिस्टर हेलेन मैल्कम ने तमाम दलीलों को झूठा एवं मनगढ़ंत बताया.उन्होंने कहा कि असांजे और नीरव के मामलों में कोई समानता नहीं है.साथ ही,उन्होंने अदालत को कहा कि नीरव की मेडिकल जांच हो चुकी है और उसमें कोई चिंताजनक बात नहीं है.
उन्होंने ये भी कहा कि भारत की ज़ेलों की स्थिति अच्छी है और राजनीतिक साज़िश जैसी भी कोई बात नहीं है.
अंततोगत्वा जब फ़ैसला सामने आया तो नीरव को निराशा ही हाथ लगी.अदालत ने नीरव मोदी की ओर से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर उठाए गए मुद्दों को खारिज़ कर दिया.कोर्ट ने कहा कि नीरव का यदि भारत में प्रत्यर्पण होता है तो उसके साथ कोई अन्याय नहीं होगा.
कोर्ट ने कहा कि मुंबई के आर्थर रोड ज़ेल का बैरक 12 नीरव मोदी के लिए फ़िट है.उसे वहां पर्याप्त इलाज़ और मेंटल हेल्थ केयर की सुविधा दी जाएगी.साथ ही,वहां उसके द्वारा ख़ुदकुशी का कोई ज़ोखिम भी नहीं है.
जज ने नीरव मोदी के वक़ील की इस दलील को भी खारिज़ कर दिया कि भारत में नीरव के खिलाफ़ किसी प्रकार की राजनीतिक साज़िश की आशंका है.
बहरहाल नीरव मोदी के खिलाफ़ लंदन की कोर्ट का यह फ़ैसला उसके प्रत्यर्पण को लेकर भारत की कोशिशों में एक बड़ी क़ामयाबी है.क्रिश्चन मिशेल और संजीव चावला के बाद अब नीरव मोदी मामले ये क़ामयाबी विजय माल्या के मामले में मज़बूती देगी.इससे देश की सरकार,जांच एजेंसियों और यहां की न्याय प्रणाली के प्रभाव को विदेशों में एक आयाम मिलेगा.दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी.
ग़ौरतलब है कि ये सबकुछ क्यों और कैसे संभव हो पाया है ये समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं बल्कि बहुत आसान है.कुछ निम्नलिखित बिन्दुओं के ज़रिए हम इसे समझ सकते हैं-
कम समय में प्रभावी चार्जशीट
तय समयसीमा में एक बेहतर और प्रभावी चार्जशीट का दाख़िल होना केस जीतने की दिशा में क़ारगर क़दम माना जाता है.इस केस में भी वही हुआ.यही कारण है कि पांचवीं बार भी नीरव मोदी को ज़मानत नहीं मिली और वह मार्च 2019 से अबतक लंबी क़ैद में है.अदालत में सुनवाई के दौरान जज सैमुअल गोज़ी ने कहा-
” हमें भारत से ऐसे 16 सबूत मिले हैं जिनके आधार पर आरोपी दोषी साबित हो सकता है.हम भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत दलीलों को स्वीकार करते हैं. “
बदले हालात व सरकार की इच्छाशक्ति
पिछले 50-60 सालों के हमारे अनुभव बड़े कड़वे रहे हैं.विदेशों में हमारी अदालतों को सम्मान नहीं मिलता था.भारत की निचली अदालतों से जुड़े मामलों में ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों और फैसलों को भी विदेशों में दरकिनार किया जाता था.वहां,ख़ासतौर से अमरीका और ब्रिटेन की अदालतों ने कई बार हमारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को महत्त्व नहीं दिया तथा उसके उलट आरोपी/पीड़ितों के साथ ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैया अपनाया.हमारी जांच एजेंसियों का मज़ाक उड़ाया.कई मामलों में मदद करने की बजाय उलझनें और बढ़ा दी.
लेकिन,अब हालात बदल गए हैं.दुनिया भारतीय पक्ष को गंभीरता से ले रही है.
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सुप्रीम कोर्ट,भारत |
उल्लेखनीय है कि अदालतें किसी मामले में आगे बढ़ने से पहले अपनी सरकारों का पक्ष जानती हैं.यह एक प्रक्रिया है लेकिन,सरकार का पक्ष एक संदेश की तरह होता है जिसका असर फ़ैसलों में नज़र आता है.
पिछले 5-6 सालों में विदेशों में भारत के प्रति लोगों की धारणा बदली है.देश में एक दृढ़ इक्षाशक्ति के साथ एक मज़बूत नेतृत्व की सरकार होने के कारण अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं.तक़रीबन सभी मामलों में,दो-चार देशों को छोड़ बाक़ी सभी देशों की सरकारें भारत के साथ खड़ी हुई नज़र आईं.ब्रिटेन भी उन्हीं में से एक है.
भ्रष्टाचार में कमी व संस्थागत सुधार
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बने माहौल का देश के सरकारी महक़मों,ख़ासतौर से जांच एजेंसियों पर असर हुआ है.जांच में तेज़ी आई है और अदालतों में तथ्यों को प्रमुखता से रखा जा रहा है.ऐसे में,हमारी अदालतें भी अपनी भूमिका में पीछे रहना नहीं चाहतीं और हमारी ओर से फ़ैसले ज़ल्दी हो रहे हैं.
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सीबीआई व ईडी |
कहते हैं कि बुद्धिमान,बलवान और धनवान की ही बातें मानने योग्य होती हैं.समरथ को नहीं दोष गोसाईं.इसलिए हम जैसे होंगें दुनिया भी हमें उसी रूप में देखेगी.बीते कल और आज़ में फ़र्क साफ दिख रहा है.
और चलते चलते प्रस्तुत हैं ये पंक्तियां…
जब हौसला बना लिया, उंची उड़ान का,
फ़िर देखना फ़िज़ूल है,क़द आसमान का |
और साथ ही…
देखो सुबह के सूरज को,जो बादलों को चीर कर निकले,
अपनी इस ताक़त से, वो रात के अंधेरे को निगले |
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