इस्लाम
कुरान की हिजाब वाली आयतों में क्या है जानिए
देखा जाए तो कुरान की हिजाब वाली आयतों में कही गई बातों और लोगों की इस बारे में राय में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है.यही कारण है कि नक़ाब, अबाया और बुर्क़े ने अतिक्रमण कर हुक्म के मुताबिक़ पहने जाने वाले शालीन कपड़ों की जगह ले ली है.
कुरान में पर्दे या हिजाब के हुक्म को लेकर बहुत तरह की भ्रांतियां फ़ैली हुई हैं.अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि वास्तव में कुरान में इसके बारे में लिखा क्या है.इसकी वज़ह भी है.पहली, आयतें अरबी में हैं, जिसके जानकार यहां कम या बहुत ही कम हैं और नतीज़तन, इसके सही तर्जुमे या अनुवाद की उपलब्धता भी कम है.दूसरी वज़ह या ख़ास वज़ह है मज़हब के ठेकेदारों और मुस्लिम नेताओं का अपना स्वार्थ और उद्देश्य.ये अपनी दुकानदारी और सियासी मंसूबों को पूरा करने के लिए आयतों की ग़लत व्याख्या करते हैं, ज़ईफ़ या दईफ़ (कमज़ोर) हदीसों का हवाला देते हैं और लोगों को गुमराह करते हैं, जबकि सहाबा हज़रत सलमा की बयान की गई एक हदीस के मुताबिक़ हदीस-वर्णनकर्ताओं को पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सख्त़ चेतावनी देते हुए कहा था-
” जो व्यक्ति मुझसे संबंध जोड़कर वह बात कहे जो मैंने नहीं कही, वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले. ”
इस प्रकार, इतनी (उपरोक्त) सख्त़ हिदायत के बावजूद ग़लत व्याख्या और ग़लत बयानी होती है.जानबूझकर लोगों को अंधेरे में रखा जाता है.
हिजाब के नाम पर नक़ाब, अबाया और बुर्क़ा थोपा जाता है, जबकि कुरान मुस्लिम महिलाओं (और पुरुषों को भी) को केवल और केवल विनम्र या शालीन लिबास पहनने (हालांकि कुरान में मुस्लिम महिला और पुरुष के लिए किसी विशेष या मज़हबी पोशाक का ज़िक्र नहीं है) की बात कहता है, और यहां कहीं भी सिर-बाल और चेहरे ढंकने का कोई ज़िक्र नहीं मिलता.
यह भी धयान रहे कि कुरान की आयतों में हिजाब को लेकर कोई स्थायी हुक्म भी नहीं है.यह तो भूतकालीन अरबी समाज के तत्कालीन परिवेश में उत्पन्न विसंगतियों से निपटने के मद्देनज़र दिया गया एक अस्थायी आदेश था, जिसे समय की मांग कह सकते हैं.चूंकि उस वक़्त कोई संवैधानिक-प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी कि दूसरे उपाय होते.
बहरहाल, कुरान में हिजाब वाली आयतों में क्या है, यह समझने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम विद्वानों के मंच के ज़रिए ख्यातिप्राप्त उलेमाओं (मुस्लिम विद्वानों) द्वारा कुरान की आयतों के तर्जुमे पर नज़र डालने की ज़रूरत है.
ज्ञात हो कि कुरान में हिजाब (आड़, ओट, पर्दा) लफ्ज़ का सात बार अथवा सात जगहों पर इस्तेमाल हुआ है.मगर, महिलाओं के लिए हिजाब से संबंधित कुल चार आयतें हैं, जिनमें से दो, अन-नूर की आयत (सूरह 24:31) और अल-अहज़ाब की आयत (33:59), में स्पष्ट और विस्तृत चर्चा या हुक्म है, जबकि अन्य में हिजाब के सिर्फ़ संकेत मिलते हैं.
सूरा अन-नूर की आयत (24:31)
महिलाओं के हिजाब को लेकर इस सबसे स्पष्ट एवं विस्तृत आयत (सूरह 24:30-31) में ईमान वाली औरतों को अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफ़ाज़त करने और अपनी छाती पर अपना ख़िमार खींचने के लिए कहा गया है.
इस आयत में अल्लाह (जिब्रील के ज़रिए) अपने रसूल से फ़रमाता है कि वे ईमान वाली औरतों (मुस्लिम औरतों) से कह दें कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफ़ाज़त करें.वे अपना बनाव श्रृंगार (शोभा, आभूषण) दूसरों पर ज़ाहिर न होने दें, सिवाय उसके जो ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ाहिर हो जाता हो.
यह भी (अल्लाह की ओर से) कहा गया है कि पैग़म्बर मोमिन औरतों से ये कह दें कि वे अपने ख़िमार यानि दुपट्टे (ओढ़नी, चुन्नी) अपने सीनों (वक्षस्थल) पर डाली रहें और अपने शौहर, अपने बाप-दादाओं, अपने शौहर के बाप-दादाओं, अपने बेटों, अपने शौहर के दूसरे बेटों, अपने भाइयों, अपने भतीजों, भांजों, दूसरी औरतों, अपनी लौंडियों (ग़ुलाम महिलाएं), घर के वे मर्द नौकर-चाकर, जो बूढ़े होने की वज़ह से औरतों से कोई मतलब नहीं रखते या कमसिन लड़के, जो औरत और उसके पर्दे के बारें ज्ञान नहीं रखते, उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव श्रृंगार ज़ाहिर न होने दिया करें. चलने में अपने पांव ज़मीन पर इस तरह न रखें (यानि ज़मीन पर न चलें) कि आवाज़ (पायल, पैंजनी, पाज़ेब की आवाज़) हो और उनके छुपे हुए श्रृंगार, गहनों (Ornaments) आदि का पता चल जाए.
इस प्रकार, इस आयत में देखें तो अल्लाह की ओर से पैग़म्बर को दिए गए महिलाओं के पर्दे को लेकर संदेश अथवा आदेश में चार प्रकार की बातें हैं.पहली, महिलाओं की आंखों में हया (शर्म, लज्जा) होनी चाहिए.दूसरी, उन्हें अपनी शर्मगाहों की रक्षा करनी चाहिए.उन्हें अपने सीनों के उभार (वक्षस्थल) को ढंकने के लिए उस पर ख़िमार डालना चाहिए.
तीसरी बात महिलाओं के बनाव श्रृंगार को ग़ैर-महरम (ऐसा पुरुष, जिससे मुस्लिम महिला की शादी हो सकती है) के सामने प्रकट न होने देने को लेकर है.इसमें कहा गया है कि महिलाएं अपनी साज-सज्जा (Adornments) अपने महरम (ऐसा पुरुष, जिससे मुस्लिम महिला की शादी नहीं हो सकती जैसे अपने भाई, पिता और अन्य उपरोक्त वर्णित लोग) के सिवाय दूसरे लोगों पर ज़ाहिर न होने दें.मगर, साथ ही ये भी कहा गया है कि जो कुछ छुप न सकता हो यानि ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ाहिर हो जाता हो, उसमें कुछ ग़लत नहीं है, उसमें उनका (महिलाओं का) कोई क़सूर नहीं है.
चौथी बात महिलाओं के चलने (ख़ासतौर से घर से बाहर जाने-आने) को लेकर है.इसमें कहा गया है कि वे सभ्य तरीक़े से चलें यानि वे इस प्रकार (ज़मीन पर पैर मारती हुई) न चलें कि पैर की पाज़ेब वगैरह की झंकार सुनाई दे और लोगों को उनके पोशीदा आराइश (छुपे हुए बनाव सिंगार, गहनों आदि) का पता चल जाए.
पर्दे से संबंधित अन्य आयतें सूरा अल-अहज़ाब में मिलती हैं.इनके विवरण में पर्दे को लेकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चर्चा की गई है.
सूरा अल-अहज़ाब की आयत (33:33)
इसमें पर्दे के साथ-साथ पैग़म्बर की बीवियों के रहन-सहन और उनके आचार-विचार को लेकर भी चर्चा की गई है.
सूरा 33 की आयत नंबर 33 (स्क्रीनशॉट) |
इस आयत में पैग़म्बर की बीवियों के लिए कहा गया है कि वे घरों में रहें और बाहर निकलकर ज़माने जाहिलियत (अज्ञान युग, इस्लामी स्रोतों के अनुसार, इस्लाम के आगमन से पूर्व अरब में अज्ञानता का काल था) की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरें.अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञाओं का पालन करें, पाबंदी से नमाज़ पढ़ें और बराबर ज़कात दिया करें.चूंकि वे पैग़म्बर की अहले-बैत (घर की सदस्य) हैं, इसलिए अल्लाह चाहता है कि हर तरह की बुराई से दूर कर उन्हें पाक़ व पाकीज़ा (पवित्र) रखे.
इस तरह, पैग़म्बर की बीवियों के पर्दे के संदर्भ में यह आयत पर्दे का बहुत संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करती है.देखा जाए तो यह अन-नूर की उपरोक्त आयत (24:31) का एक अंश मात्र है.मगर, इसमें पैग़म्बर की बीवियों को उनके अपने बनाव सिंगार ज़ाहिर न करने की बात, एक बिल्कुल अलग परिस्थिति में (घर में ही रहकर यानि बाहरी परिवेश से अलग रहते हुए), बयान की गई है.
सूरा अल-अहज़ाब की आयत (33:55)
पर्दे को लेकर यह आयत खासतौर से महरम की अवधारणा से संबंधित है.
सूरा 33 की आयत नंबर 55 (स्क्रीनशॉट) |
इस आयत में अल्लाह अपने रसूल की बीवियों के बारे में कहता है कि उन्हें अपने पिताओं, पुत्रों, अपने भाईयों, भतीजों, भांजों, अपनी क़रीबी महिलाओं और ग़ुलाम औरतों के सामने पर्दे न करने में कोई हर्ज या दोष नहीं है.
दरअसल, यह आयत भी अल-अहज़ाब की उपरोक्त आयत सूरह 33:33 की तरह पैग़म्बर की बीवियों के संदर्भ में है और अन-नूर में वर्णित आयत यानि सूरह 24:31 से मिलती-जुलती है.देखा जाए तो यह, उसी (सूरह 24:31) के एक हिस्से के रूप में है.मगर, दोनों में फ़र्क ये है कि वह आयत जहां सर्वसाधारण के बारे में बयान करती है वहीं, यह आयत ख़ासतौर से पैग़म्बर की बीवियों के बारे में बयान होती है.
सूरा अल-अहज़ाब की आयत (33:59)
इस आयत में पैग़म्बर के परिवार की महिला सदस्यों और दूसरी मोमिनात (मुस्लिम औरतों) के घर से बाहर जाने-आने (सूरह 33:33 वाली परिस्थितियों से बिल्कुल अलग परिस्थितियों में) के दौरान पर्दे या हिजाब करने से संबंधित चर्चा है.
सूरा 33 की आयत नंबर 59 (स्क्रीनशॉट) |
यहां अल्लाह अपने संदेश या आदेश में अपने रसूल से कहता है कि वे अपनी बीवियों, बेटियों और दूसरी मोमिनात से कह दें कि वे अपने ऊपर अपनी चादर (या उसका कुछ हिस्सा) लटका लिया करें.इससे इस बात की अधिक संभावना है कि वे पहचान ली जाएं और छेड़ी न जाएं, सताई न जाएं.
इस प्रकार, यह आयत महिलाओं के लिए घर से बाहर हिजाब के स्वरुप को स्पष्ट करती है.यह, सूरह 24:31 की तरह हिजाब की आवश्यकता के संदर्भ में न सिर्फ़ स्पष्ट बयान करती है, बल्कि कई सारी भ्रांतियों और झूठ का भी पर्दाफ़ाश कर देती है.ऐसे में, आज ज़रूरत इस बात की है कि लोग सुनी-सुनाई बातों को मानने के बजाय सच जानने का प्रयास करें.
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