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इस्लाम

क़ुरान की 26 आयतों में क्या है जानिए

क़ुरान मुसलमानों का सबसे पवित्र ग्रंथ है.मान्यता के अनुसार, इसमें लिखी बातें ख़ुदा के वही आदेश और इच्छाएं हैं जो स्वयं उसने देवदूत ज़िब्राइल के ज़रिए हज़रत मोहम्मद को पहली बार सुनाई थी.
 
यह महज़ एक क़िताब नहीं, मुस्लिम धर्म की नीँव है.इसमें 6,666 आयतें हैं, जिन्हें अमन, मोहब्बत और भाईचारे का संदेश कहा जाता है.आसमानी क़िताब की दुनियावी बातें.
 
मगर क़ुरान और उसकी आयतों को लेकर आलोचनाएं भी बहुत होती हैं.क़ुरान की सबसे आम आलोचना पहले से मौज़ूद उन स्रोतों को लेकर है जिन पर क़ुरान आधारित है, क़ुरान के आन्तरिक विरोधाभास, इसकी अस्पष्टता और नीति संबंधी शिक्षाओं को लेकर होती है.
 
आजकल इसकी 26 आयतों को लेकर बहस चल रही है.
 
क़ुरान में आयतें,सच जानिए,26 आयतें
वसीम रिज़वी,क़ुरान एवं सुप्रीम कोर्ट

 

दरअसल, हाल ही में क़ुरान मज़ीद की 26 आयतों को क्षेपक यानि बाद में जोड़ी गई आयतें बताते हुए उन्हें क़िताब से हटाने का आदेश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई है.याचिकाकर्ता सैयद वसीम रिज़वी ने इसमें कहा है कि क़ुरान में 26 आयतें ऐसी हैं, जो दिलों में नफ़रत भरती हैं.इनमें क़त्ल व ग़ारत और कट्टरपन की बातें हैं, जिनके प्रभाव में आकर मुसलमान आतंकवाद की ओर बढ़ जाते हैं.
 
याचिका में जिन आयतों का ज़िक्र किया गया है, वो निम्नलिखित हैं-
 
 

1. सूरा 9, अत-तौबा 5, पारा 10 

जब पवित्र महीने (ज़िकाद, ज़िलहिज्ज़, मुहर्रम और रज्ज़ब) बीत जाएं तो मुशरिकों (बहुदेववादी, दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों) को जहां पाओ उनका क़त्ल करो.घात लगाकर बैठो, उनको घेरो, पकड़ो और हमले करो.
 
लेकिन, यदि वे इस्लाम क़बूल कर लें,  नमाज़  पढ़ें,  ज़कात दें, तो उन्हें बख्श दो, उनका रास्ता छोड़ दो.
 
        
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इसप्रकार है-
 
क़ुरान में आयतें,सच जानिए,26 आयतें
याचिका में उल्लिखित आयत

 

2. सूरा 9, अत-तौबा 28, पारा 10  

मुशरिक (ग़ैर-मुस्लिम) अपवित्र हैं.उन्हें मस्ज़िदे हराम यानि क़ाबा तक पहुंचने न दो.
 
अल्लाह बड़ा दयालु है वह तुम्हारी ग़रीबी दूर करेगा और धनवान बना देगा.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

3. सूरा 4, अन-निसा 101, पारा 5   

यात्रा के समय, अगर तुम्हें डर हो कि काफ़िर (अल्लाह को नहीं मानने वाले, दूसरे धर्मों के लोग, ग़ैर-मुस्लिम) तुम्हें सताएंगें, नुक़सान पहुंचाएंगें तो नमाज़ को संक्षिप्त कर दो यानि कम से कम समय में नमाज़ की रस्म पूरी कर लो.
 
काफ़िर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं.
 
   
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इसप्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

4. सूरा 9, अत-तौबा 123, पारा 11     

अपने आसपास रहने वाले वो लोग (ग़ैर-मुस्लिम) जो ख़ुदा और उसकी आयतों को इनकार करते हैं, उनसे लड़ो.
 
ऐसा करो कि उनपर तुम्हारा दबदबा क़ायम हो.
 
अल्लाह तुम्हारे साथ है क्योंकि तुम्हारे दिलों में उसका खौफ़ है.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

5. सूरा 4, अन-निसा 56, पारा 5  

जिन लोगों (काफ़िरों) ने हमारी आयतों को इनकार किया है, उन्हें हम ज़ल्द ही आग में झोंक देंगें.फ़िर उनकी पकी हुई ख़ालें उतार देंगें, ताकि पीड़ा बढ़े और वे यातना का मज़ा चखते रहें.
  
अल्लाह बहुत प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी है.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

6. सूरा 9, अत-तौबा 23, पारा 10   

तुम इमान वाले (अल्लाह में यक़ीन रखने और इस्लामी मान्यताओं का पालन करने वाले,  मोमिन यानि मुसलमान) लोग हो, इसलिए अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि काफ़िरों को अपना दोस्त मत बनाओ.उनसे दूर रहो.
 
ख़ुदा में यक़ीन नहीं रखने वाले, तुम्हारा बाप और सगे भाई ही क्यों हों, उन्हें त्याग दो.
 
जो ऐसा नहीं करता यानि आदेश की अवहेलना करता है, वह काफ़िर माना जाएगा.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
क़ुरान में आयतें,सच जानिए,26 आयतें
याचिका में उल्लिखित आयत

 

7. सूरा 9, अत-तौबा 37, पारा 10 

पावन महीनों (ज़िकाद, ज़िलहिज्ज़, मुहर्रम और रज्ज़ब) का आदर न करना अथवा उसे नक़ार देना कुफ़्र है यानि इस्लाम के खिलाफ़ आचरण या अवमानना है.ऐसा करने वालों (काफ़िरों) को अल्लाह सही मार्ग नहीं दिखाता.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचका में उल्लिखित आयत

 

8. सूरा 5, अल-माइदा 57, पारा 6 

तुमसे पहले जिनको (यहूदियों और ईसाइयों) क़िताबें (तोरात और इंजील यानि बाइबल) दी गई थी, वे तुम्हारे धर्म (इस्लाम) का मज़ाक उड़ाते हैं.इसका अनादर करते हैं.इसलिए उन्हें और साथ ही इस्लाम को इनकार करने दूसरे धर्म के लोगों (हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध आदि) को अपना दोस्त मत बनाओ.
 
अल्लाह से डरो, अगर तुम ईमान वाले हो.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

9. सूरा 33, अल-अहज़ाब 61, पारा 22    

वे (काफ़िर) तुम से दूर ही रहेंगें. मगर, जहां कहीं भी पकड़े जाएंगें, ज़ान से मार दिए जाएंगें.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

10. सूरा 21, अल-अंबिया 98, पारा 17 

निश्चय ही तुम और वे जो अल्लाह को छोड़कर दूसरों को पूजते हैं (दूसरे धर्म को मानते हैं) सभी जहन्नम (नरक) के इंधन (जलाई जाने वाली चीज़ें जैसे लकड़ी आदि) है.वे मौत के घाट उतरेंगें.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

11. सूरा 32, अस-सज़दा 22, पारा 21 

उस व्यक्ति (ग़ैर-मुस्लिम) से बड़ा अत्याचारी कोई नहीं, जिसे उसके ईश्वर के श्लोक और मन्त्रों के ज़रिए याद दिलाया जाता है, लेकिन बाद में वह फिर भूल जाता है.ऐसे लोग अपराधी है.निश्चय ही हम उनसे बदला लेंगें.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

12. सूरा 48, अल-फ़तह 20, पारा 26 

अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी ग़नीमतों (जैसे माल-ए-ग़नीमत यानि लूट का माल जैसे धन-दौलत, बहु-बेटियां, बच्चे, मवेशी आदि) का वादा किया है, जिन्हें तुम एक निशानी के रूप में प्राप्त करोगे.वह तुम्हें सीधे मार्ग पर ले जाएगा.
  
यह विजय तुम्हें अल्लाह ने तात्कालिक रूप से दिलायी है.इसके लिए उसने दुश्मन के हाथ रोक दिए थे, ताकि वे तुम पर हमला करने का साहस न कर सकें.
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

13. सूरा 8, अल-अनफ़ाल 69, पारा 10  

इसलिए जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने (अपने दुश्मनों से ज़ंग जीतकर) हासिल किया है, उसका भोग (उपयोग) करो और अल्लाह का डर रखो.अल्लाह तुम्हें माफ़ करेगा.
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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14. सूरा 66, अत-तहरीम 9, पारा 28    

इस्लाम क़बूल करने से इनकार करने वालों का ठिकाना ज़हन्नम है.इसलिए, उनसे ज़िहाद करो और उन्हें ख़त्म कर दो, ताकि वे अपने अंतिम ठिकाने (ज़हन्नम) तक पहुंच जाएं.
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

15. सूरा 41, हाo मीमo अस-सज़दा 27, पारा 24    

हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार (इस्लाम क़बूल नहीं किया) किया है उन्हें यातनाएं देंगें.उनके इस सबसे घिनौने काम (दूसरे धर्म का पालन) जो वे करते रहे हैं, उसके लिए उन्हें दंडित करेंगें.
 
  
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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16. सूरा 41, हाo मीमo अस-सज़दा 28, पारा 24 

क़ुरान की आयतों को नहीं मानने वाले (काफ़िर) अल्लाह के दुश्मन हैं.ऐसे दुश्मनों का ठिकाना सिर्फ आग है.इसलिए हम उन्हें, उनके असली ठिकाने तक पहुंचाएंगें.उन्हें आग में झोंक देंगें.
 
    
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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याचिका में उल्लिखित आयत

 

17. सूरा 9, अत-तौबा 111, पारा 11    

अल्लाह ने मुसलमानों से जन्नत के बदले उनकी ज़ान और माल ख़रीद लिए हैं.इसी (ज़न्नत हासिल करने के लिए) के लिए वे लड़ते हैं, मारते हैं और मरते भी है.
 
क़ुरान के अलावा तौरात और इंजील में भी में इसका (ज़न्नत का) वादा किया गया है.
 
अल्लाह से बढ़कर इस वादे को पूरा करने वाला कोई दूसरा नहीं हो सकता.
 
अल्लाह से किया गया यह सौदा (ज़न्नत का सौदा) सबसे बड़ी सफलता है.ऐसे में,खुशियां मनाई जानी चाहिए.
 
  
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अंग्रेज़ी में इसका अनुवाद इस प्रकार है-
 
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18. सूरा 9, अत-तौबा 58, पारा 10 

काफ़िर तुम पर ये आरोप लगाते हैं कि तुम खैरात (दान) बांटने में अन्याय करते हो.लेकिन, यदि उसमें (खैरात) से थोड़ा उन्हें दे दिया जाए तो वे ख़ुश हो जाएंगें.इसके विपरीत, उन्हें ना दो, तो नाराज़ हो जाएंगें.वे बहुत घटिया हैं.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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19. सूरा 8, अल-अनफ़ाल 65, पारा 10 

ऐ नबी! मोमिनों (मुसलमानों) को काफ़िरों के खिलाफ़ ज़िहाद करने के लिए तैयार करो.
 
क़ाफ़िर नासमझ हैं, जबकि मोमिन उनसे 10 गुना ज़्यादा ताक़तवर हैं.
 
इस हिसाब से, ज़ंग के मैदान में अगर तुम्हारे पास 20 लड़ाके हैं तो उनके 200 लड़ाकों पर और तुम्हारे सिर्फ़ एक सौ लड़ाके उनके एक हज़ार लड़ाकों पर भारी पड़ेंगें.फ़तह तुम्हारी होगी.
 
    
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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20. सूरा 5, अल-माइदा 51, पारा 6 

ईमान वाले (मुसलमान) यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएं क्योंकि वे (दोनों) उनके खिलाफ़ (दुश्मनी के मक़सद से) एकजुट हैं.
   
ऐसे में, कोई मुसलमान अगर उन्हें (यहूदी और ईसाइयों को) अपना दोस्त बनाता है तो वह भी उन्हीं के जैसा (दुश्मन) माना जाएगा.इस्लाम का दुश्मन, जिसकी सज़ा तय है.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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21. सूरा 9, अत-तौबा 29, पारा 10 

वे (ग़ैर-मुस्लिम) लोग जो क़यामत के दिन (अंतिम दिन) तथा अल्लाह और उनके रसूल (पैग़म्बर मोहम्मद) के बताए नियमों का  पालन नहीं करते, ग़लत धर्म का अनुसरण करते हैं, उनसे लड़ो.
  
उन्हें शिक़स्त दो और सत्ता से बेदख़ल कर इतना मज़बूर कर दो कि तुम्हारे अधीन रहकर वे जज़िया (मुस्लिम राज्य में रहने वाली ग़ैर-मुस्लिम जनता से वसूल किया जाने वाला एक प्रकार का धार्मिक कर) देने लगें.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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22. सूरा 5, अल-माइदा 14, पारा 6  

जिन्होंने ख़ुद को ईसाई कहा था, उन्होंने हमसे कुछ वादे किए थे.उन्होंने कहा था कि वे उस पर ख़रा उतरेंगें.मगर ऐसा हुआ नहीं और वे उसका (वादे का) एक बड़ा हिस्सा (अधिकांश वादे) भूल गए, हमसे वादाखिलाफ़ी की.इसीलिए हमने उनके बीच क़यामत तक के लिए दुश्मनी और मनमुटाव (इर्ष्या) की भावना भड़का दी.
 
अल्लाह ज़ल्द उन्हें इसका अंज़ाम दिखा देगा.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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23. सूरा 4, अन-निसा 89, पारा 5  

वे (दूसरे धर्म के लोग) तो चाहते ही हैं कि तुम भी उनकी तरह भटक कर विधर्मी बन जाओ.वे कपटी (छलिये) हैं.इसलिए उन्हें तब तक अपना दोस्त मत बनाओ तब तक वे ख़ुदा की राह में अपना सब कुछ त्याग न दें/अपना धर्म छोड़कर इस्लाम क़बूल न कर लें.
 
लेकिन, अगर वे ऐसा नहीं करते तो जहां भी मिलें, उन्हें पकड़ों और उनका क़त्ल कर दो.
 
उन्हें मित्र ही नहीं अपना सहायक (मुलाज़िम) भी मत बनाओ.
 
 
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24. सूरा 9, अत-तौबा 14, पारा 10  

उनसे (काफ़िरों से) लड़ो.अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे हाथों उन्हें यातना दिलवाएगा.
 
अल्लाह तुम ईमान वालों (मोमिनों) का दुःख हरेगा.
 
 
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इसका अंग्रेजी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
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25. सूरा 3, आले इमरान 151, पारा 4  

इस्लाम को इनकार करने वाले लोगों (काफ़िरों) ने अपने अलग भगवान बना रखे हैं और ऐसी पूजा-पद्धति अपना रखी है जिसका ज़िक्र कभी अल्लाह ने कहीं किया नहीं है.
 
उनके दिलों में ज़ल्द हम दहशत भर देंगें.उनका ठिकाना सिर्फ़ आग (ज़ह्न्नम) है जहां, हम उन्हें पहुंचा देंगें.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
 

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याचिका में उल्लिखित आयत

 

 

26. सूरा 2, अल-बक्ररा 191, पारा 2   

जहां कहीं भी उनपर (काफ़िर) क़ाबू पाओ,उनका क़त्ल करो.उन्हें वहां से निकाल दो, जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है.
 
उत्पीड़न हत्या से भी ज़्यादा दुखदायी होता है.
 
मस्ज़िदे हराम (क़ाबा) के नज़दीक युद्ध ना हो, ऐसी कोशिश करो.लेकिन, अगर वे तुमसे वहां भिड़ जाएं तो छोड़ो भी मत.उनका क़त्ल कर दो.ऐसे काफ़िरों के लिए ऐसा ही बदला होता है.
 
 
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इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद इस प्रकार है-
 
क़ुरान में आयतें,सच जानिए,26 आयतें
याचिका में उल्लिखित आयत
 
ऐसा नहीं है कि क़ुरान की कुछ आयतों को लेकर पहली बार बवाल मचा है.इससे पहले भी विवाद होते रहे हैं.दिल्ली की एक अदालत ने भी संज्ञान में लाई गई 24 आयतों के बारे में गंभीर टिप्पणी की थी.
 
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ज़ेड एस लोहाट ने 31 जुलाई 1986 को कहा था-
 
” उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से ये स्पष्ट होता है कि ये बहुत हानिकारक हैं, और घृणा की शिक्षा देती हैं.इनसे एक तरफ़ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेद होने की संभावना पैदा होती है. 
मैंने उक्त आयतों का क़ुरान मज़ीद से मिलान किया है, और पाया कि सभी आयतें वैसी ही उधृत की गई हैं, जैसी क़ुरान में हैं.यहां पेशकर्ताओं का सुझाव मात्र है.लेकिन, ऐसी आयतें यदि नहीं हटाई गईं तो सांप्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाएगा. “
 
 
मगर कुछ ज़ानकारों का कहना है कि सिर्फ़ 24 या 26 ही नहीं बल्कि 400 से भी ज्यादा ऐसी आयतें क़ुरान में मौज़ूद हैं, जो इंसानियत, आपसी प्रेम और भाईचारे के लिए ख़तरा हैं.उनपर ग़ौर करना होगा.
 
दरअसल, समूचा इस्लाम काफ़िर और मोमिन पर टिका हुआ है.मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम का बंटवारा इतना गहरा है कि खाने-पीने की चीज़ें भी हलाल और हराम में बांट दी गई हैं.
 
दूसरी तरफ़, सवालों के ज़वाब में मुसलमान कहते हैं कि क़ुरान एक मुक़म्मल (सपूर्ण, पूरी) क़िताब है, और इसमें एक कॉमा भी इधर-उधर नहीं किया जा सकता.
 
हालांकि ये पहला मौका नहीं है, जब कुरान को लेकर सवाल उठे हैं.इससे पहले दूसरी क़ौमों की तरफ़ से विरोध के स्वर सुनाई देते थे.मगर, इस बार हालात थोड़े अलग हैं.अबकी बार, सुधार की आवाज़ इस्लाम के भीतर से आई है.
 
वसीम रिज़वी की चिंता एक तरह से 21 वीं सदी में इस्लाम को बचाने का भी प्रयास है.
 
21 वीं सदी में जहां सूचना जन-जन को सुलभ है वहां इस्लाम की गुप्त और रहस्यमई बातें बहुत लंबे समय तक गुप्त और रहस्यमय नहीं रहने वाली हैं.क़ुरान और हदीस यह सब अब इंटरनेट पर उपलब्ध हैं.जो कोई चाहेगा इसे पढ़ेगा और समझेगा कि क़ुरान ग़ैर मुस्लिमों को किस नज़रिए से देखता है.
 
अच्छा होता भारत के मुसलमान रिज़वी की पहल पर बहस करते.मगर ऐसा हुआ नहीं.कुछ लोग इसको राजनीतिक रंग देने में जुट गए हैं, और बात कहीं से कहीं जा रही है.यह स्वयं इस्लाम के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
 
रिज़वी की दलील है कि 26 आयतें क़ुरान की मूल बातों से अलग हैं, और इन्हें मुहम्मद साहब के जाने के बाद तीन खलीफाओं अबू बक्र, उमर और उस्मान ने अपनी ताकत बढ़ने के मक़सद जोड़ दी थी.इस पर बहस की दरक़ार है.
 
21 वीं सदी में जो मुसलमान 7 वीं सदी की मानसिकता से जीना चाहेगा उसके लिए बहुत मुश्किल होने वाली है, क्योंकि इस्लाम अगर अपने अंदर ख़ुद बदलाव नहीं करता, तो यह सदी बहुत कुछ बदल देगी.
 
और चलते अर्ज़ है ये शेर…
 
कोई पूछे तो क्या बतलाएंगें हम,
कि इस मंज़र में क्या अच्छा लगा है |
 
और साथ ही,
 
इक साल गया इक साल नया है आने को, 
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को |
 
  
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