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रक्षा

अग्निपथ योजना: सेना विरोधी ही नहीं, देश के लिए भी घातक

– अलगाववादी-जिहादी विचारधारा के युवकों को भारत के ख़िलाफ़ युद्ध के प्रशिक्षण के लिए सीमा पार जाने की ज़रूरत नहीं होगी
 
– हमारी सेना के दांव-पेच नक्सली-जिहादी-खालिस्तानी हमारी सेना ही के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करेंगें
 
– अग्निपथ योजना सरकार की गिरती साख को बचाने और वोटबैंक को साधने के मक़सद लाई गई एक विशुद्ध राजनैतिक योजना है, जिसका सामाजिक-आर्थिक सुधारों से कोई सरोकार नहीं 
अल्पकालिक सैनिक के रूप में अग्निवीरों की संख्या 50 फीसदी हो जाने से जूनियर लीडरशीप की समस्या तो पैदा होगी ही सेना भी कमज़ोर होगी
 
राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी की मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक…इन पंक्तियों को सच्चे भारतवासी न सिर्फ़ स्मरण रखते हैं, बल्कि इनमें वर्णित तुलनात्मक दृष्टिकोण को अपने हुए पुष्प की अभिलाषा का मान भी रखते हैं.मगर, यहां एक काला सच यह भी है कि सेना और देश की अगुआई करने वाला हमारा राजनीतिक नेतृत्व इन मूल्यों-आदर्शों और परंपराओं से इत्तेफ़ाक नहीं रखता और केवल और केवल वोटबैंक की नीति का अनुसरण करता है.भारत की सत्ता भारत राष्ट्र के विरुद्ध कार्य करती है.अग्निपथ योजना इसी की एक कड़ी है, जो हमारी सैन्य-व्यवस्था के तो ख़िलाफ़ है ही, देश के लिए भी घातक है.
 
 
अग्निपथ योजना, सेना के ख़िलाफ़, देश विरोधी
अग्निपथ योजना, सरकार और सेना (प्रतीकात्मक)

 

1947 के बाद से ही लगातार सेना के ढ़ांचे में बदलाव, इसके कामकाज में दख़ल और इसके राजनीतिक इस्तेमाल की कोशिश हो रही है.ऊपर से आइएएस लॉबी है, जो इसे कमज़ोर कर केवल एक कठपुतली के रूप में देखना चाहती है.मगर, पता नहीं कौन-सी अदृश्य शक्ति हमारे वीर सपूतों को और भी मजबूत करती जाती है, इन्हें इस क़ाबिल बनाती है कि ये अभावग्रस्त रहते हुए, न्यूनतम ख़र्च पर और विकट परिस्थितियों में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं.यही कारण है कि हमारी सेना दुनिया की सर्वश्रेष्ट सेना बनी हुई है.कुछ लोग कहते हैं कि यह भारत की माटी का कमाल है, हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत है, जो इन्हें अजेय बनाती है.बहरहाल, इसकी जड़ें खोखली करने की दिशा में एक बार फिर प्रयास हुआ है, अग्निपथ नामक एक अविवेकपूर्ण और दोषपूर्ण योजना जबरन लाद दी गई है, यह जानते हुए भी कि निकट भविष्य में इसके गंभीर नतीज़े भुगतने होंगें.
 
 

क्या है अग्निपथ योजना?

अग्निपथ योजना सशस्त्र बलों की तीनों सेवाओं यानि थल सेना, नौसेना और वायुसेना में कमीशन अधिकारियों के नीचे (जैसा कि कहा गया है) के सैनिक पदों पर भर्ती के लिए भारत सरकार की एक योजना है.इसके तहत सेना में शामिल होने वाले जवान अग्निवीर कहलाएंगें.
 
अग्निवीर बनने के लिए अभ्यर्थी की उम्र साढ़े सत्रह (17.5) साल से इक्कीस (21) साल के बीच होनी चाहिए.हालांकि कोरोना महामारी के कारण पहले साल उम्मीदवारों की उम्र में दो साल की छूट देते हुए सीमा बढाकर इसे 23 साल किया गया है.
 
उम्मीदवार को 12 वीं में 50 फ़ीसदी अंकों से पास होना चाहिए.
 
अग्निवीरों की सेवा की कुल अवधि चार साल की होगी, जिसमें छह महीने की ट्रेनिंग और साढ़े तीन (3.5) साल की सेवा शामिल है.
 
चार साल बाद 25 फ़ीसदी (4 में से सिर्फ़ 1) अग्निवीर ही कौशल के आधार पर स्थाई किए जाएंगें, जबकि 75 फ़ीसदी बाहर कर दिए जाएंगें, जिन्हें न तो पेंशन मिलेगी और न भूतपूर्व सैनिक का ही लाभ मिलेगा.
 
सेवा समाप्ति के बाद अग्निवीरों को कौशल प्रमाणपत्र दिया जाएगा, जो भविष्य में उनके लिए रोज़गार के रास्ते खोलेगा.साथ ही, रक्षा मंत्रालय, केन्द्रीय बल, राज्य पुलिस बलों आदि की भर्तियों में तरजीह दी जाएगी.
 
अग्निवीरों को 48 लाख का बीमा कवर भी मिलेगा.
 
अग्निवीरों की सैलरी के बारे में कहा गया है कि शुरुआती वेतन 30 हज़ार रुपए का होगा और यह चौथे साल तक बढ़कर 40 हज़ार तक हो जाएगा.मगर, पूरा पैसा प्रतिमाह हाथ में (Cash in Hand) नहीं मिलेगा, बल्कि इसका 30 फ़ीसदी हिस्सा सरकार सेवानिधि योजना के तहत अपने पास जमा रखेगी, और इतना ही योगदान वह अपनी तरफ़ से करेगी.यह आख़िर में तक़रीबन 10-12 लाख की रक़म (कुल जमा राशि) एकमुश्त मिलेगी, जो टैक्स फ्री होगी. मगर, इस पर स्टैण्डर्ड टैक्स (डिडक्शन) लागू होगा.
 
अग्निपथ योजना, सेना के ख़िलाफ़, देश विरोधी
अग्निवीरों का वेतन व अन्य लाभ
ज्ञात हो कि चार सालों की सेवा समाप्ति के बाद जो अग्निवीर स्थाई होंगें, उन्हें सेवा निधि से सिर्फ़ उनके द्वारा की गई जमा राशि ही प्राप्त होगी, जबकि सेवा से बाहर होने वाले अग्निवीरों को पूरी रक़म (स्वयं द्वारा और सरकार द्वारा जमा दोनों तरह की जमा राशि) ब्याज सहित मिलेगी.
 
अग्निवीरों की तैनाती कश्मीर और देश के अलग-अलग हिस्सों में करने का प्रावधान है.
 
बताया जाता है कि योजना का उद्देश्य देश के युवाओं के लिए सैन्य-बलों में अवसर बढ़ाना है.इसके तहत पहले साल भर्ती होने वाले अग्निवीरों की संख्या कुल सशस्त्र सैन्य बलों की तीन फ़ीसदी होगी, जबकि आगे सेना में मौजूदा संख्या की क़रीब तीन गुना भर्ती होगी.हालांकि यह कब तक होगा, यह स्पष्ट नहीं है.
 
सूत्रों के हवाले से यह भी पता चलता है कि चार सालों में क़रीब 1लाख 86 हज़ार अग्निवीरों की भर्ती होगी और यह इस प्रकार जारी रहेगी कि सेना में युवा और अनुभवी वरिष्ठ रैंक के अधिकारियों का अनुपात साल 2032 तक 50-50 का हो जाए.
 
तो ये है अग्निपथ योजना.कितना विरोधाभास और त्रुटियों से भरी हुई है यह! लगता है कि इसे बनाने वालों को अपनी जिम्मेदारियों का बिल्कुल भी एहसास नहीं है.इसके होने वाले परिणामों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं की गई है और झूठ को जुमलों की चाशनी में डुबोकर परोस दिया गया है.
इसमें संदेह नहीं है कि एक अराजक व्यवस्था की तैयारी है, जो सीधे धरातल पर चोट करेगी.
 
इस अदूरदर्शी और दोषपूर्ण योजना से हमारी सेना कमज़ोर हो जाएगी.
अध्ययन से पता चलता है कि अग्निपथ योजना भारतीय सैन्य व्यवस्था-परंपरा को तो बड़ी क्षति पहुंचाने वाली है ही, देश की सुरक्षा को भी ख़तरे में डालने वाली है. ख़ासतौर से, जब हमारे सामने पाकिस्तान और चीन जैसे एक साथ दो कट्टर दुश्मन देश खड़ें हों, तो स्थिति और भी विकट हो जाती है.वे हमारी कमज़ोरियों का लाभ उठा सकते हैं.
ऐसे में, योजना संबंधी विचारों और नीति निर्माण में कहां-कहां चूक हुई है और इसमें किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है, इस पर विचार करने की आवश्यकता है, ताकि कुछ लोगों की ग़लतियां देश के लिए अभिशाप न बन जाए.

सेवाकाल के नज़रिए से ग़लत

अग्निपथ योजना एक सैनिक के सेवाकाल की दृष्टि से ग़लत है.इस अल्पकालिक प्रक्रिया के तहत अग्निवीर न तो एक अच्छा सैनिक बन सकता है और न ही इसे वह अपना करियर बना सकता है, जिस पर उसके जीवन की नैया पार लगे.जहां तक एक चौथाई अग्निवीरों को स्थाई बनाने की बात है, तो वह भी दोषपूर्ण है, क्योंकि इसके चयन का आधार स्पष्ट नहीं है.साथ ही, यह सवाल भी है कि जो चार सालों के लिए सक्षम और कार्यकुशल है, वह आगे के लिए आगे के लिए किस प्रकार अकुशल और अयोग्य होकर उसी व्यवस्था से बाहर हो जाएगा, जहां वह अपने कौशल के दम पर प्रशस्ति पत्र और पदक भी पा चुका है.ज़ाहिर है कि इसमें दोष है और धांधली की गुंजाइश भी है.
ज्ञात हो कि सशस्र बलों में स्थाई आयोग (Permanent Commission) प्रविष्टि के ज़रिए चयनित अधिकारी के पास सेवानिवृत्ति की आयु तक यानि 60 साल (निर्धारित) अपने देश की सेवा करने का अवसर/विकल्प होता है.एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन- SSC) में भी सेना में शामिल होने और 14 वर्षों (प्रारंभिक 10 साल के बाद यदि मेडिकल टेस्ट और सर्विस रिकॉर्ड सही है तो 4 साल की सेवा अवधि और बढ़ जाती है) तक एक कमीशन अधिकारी के रूप में सेवा करने का विकल्प होता है.मगर, अग्निपथ स्कीम (योजना) में केवल 25 फ़ीसदी सैनिकों को ही आगे सेवा जारी रखने का मौक़ा दिया गया है, जबकि बाक़ी 75 (तीन चौथाई) फ़ीसदी सैनिकों को सेवा से बाहर करने की बात कही गई है.यह बिल्कुल अलग ही स्थिति है, और इसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता.
 
 

सेना की रेजिमेंटल प्रणाली पर बुरा असर

अग्निपथ योजना हमारी सैन्य व्यवस्था-परंपरा के लिहाज से ठीक नहीं है.बड़ा साफ़ नज़र आता है कि इसके दूरगामी परिणाम होंगें मगर, हमारी सरकार यह इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है.औरों की कौन कहे भूतपूर्व सैनिकों और रक्षा विशेषज्ञों की भी नहीं सुनी जा रही है, जबकि उन्हें बख़ूबी पता है कि हमारे सैनिक नाम, नमक और निशान की भावना से लड़ते हैं.नाम मतलब रेजिमेंट, नमक मतलब देश और निशान मतलब पलटन का झंडा, हमारी सेना के ये ही तीन मंत्र हैं, जिन्हें हमारे रणबांकुरे धारण करते हैं.वे इन्हीं मंत्रों और अपने रेजिमेंट के ख़ास उद्घोष के साथ लड़ते हैं, मारते हैं या फिर वीरगति को प्राप्त होते हैं.क्या इसे बदला जा सकता है? बदले जाने का परिणाम क्या होगा?
 
यह सच है कि नीति निर्धारकों की कॉन्वेंट की पढ़ाई भारत और भारतीयता के अनुकूल नहीं है पर, उन पर ज़िम्मेदारी भी तो भारत की ही है.उन्होंने भारतीय इतिहास और भूगोल भी पढ़ा होगा.वे भारत की परंपराओं को भी जानते होंगें.वे यह भी अवश्य जानते होंगें कि किस तरह अंग्रेजी हुकूमत भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हुई थी.
 
तो फिर, वे क्यों और कहां भटक गए हैं?
ज्ञात हो कि हमारी रेजिमेंटल प्रणाली दूसरे देशों से भिन्न है.यहां अपनी एक अलग ही तरह की व्यवस्था है, जो भले ही अंग्रेजों के ज़माने में शुरू हुई हो लेकिन, इसकी जड़ें सदियों पुरानी हैं और काफ़ी गहरी हैं.यह देश-क्षेत्र विशेष की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के ज़रिए सेना के लिए आवश्यक तत्व और मजबूती प्रदान करती है.
हमारी गोरखा, डोगरा, गढ़वाल, जाट, मद्रास, असम आदि रेजीमेंटों में निश्चित क्षेत्र और जातियों से भर्ती होती है.
भारत सरकार और उसके दरबारी भले ही कह रहे हों कि सेना की रेजिमेंटल प्रणाली में कोई बदलाव नहीं होगा परंतु, सच्चाई यह है कि अग्निविरों की खुली भर्ती प्रक्रिया का इस पर निश्चित रूप से असर होगा.इनकी यूनिटों का तालमेल बगड़ सकता है.

सैन्य सेवा में अनुबंध प्रणाली ठीक नहीं

सैन्य सेवा सर्वोच्च सेवा है.हर पल इसमें त्याग और बलिदान की भावना होती है, जिसकी क़ीमत नहीं लगाई जा सकती.फिर भी, जो कुछ भी एक सैनिक को मिल रहा है, उसी में वह खुश रहता है क्योंकि वह जानता है कि उसका कार्य अपने देश और अपने ध्वज के लिए है और इससे बड़ा कोई और कार्य नहीं होता.
एक सैनिक यह जानता है कि उसके पीछे उसका देश खड़ा है और उसे अगर कुछ हो गया, तो उसकी सरकार उसके परिवार का ख़याल रखेगी.इसीलिए लड़ते हुए उसे फ़िक्र होती है तो बस देश की.अपने ध्वज की.
 
सैनिक सामान्य व्यक्ति नहीं होते.सामरिकता की भावना से भरे वे क्रांतिकारी विचारों के होते हैं.उनमें त्याग और बलिदान कि भावना कूट-कूटकर भरी होती है.यही वज़ह है कि नाजुकमिजाज़ और कमज़ोर दिलवाले सेना में नहीं टिक पाते और प्रशिक्षण के दौरान ही सेना छोड़कर चले आते हैं.इसके विपरीत कई युवा सेना में भर्ती होने कि दिली ख्वाहिश रखते हैं.वे देश के लिए तन-मन न्यौछावर करने की भावना से सेना में जाते हैं.
किसी का बाप वीरगति को प्राप्त होता है, तो उसके बेटे, और भाई के लिए भाई के अंदर दुश्मन से लोहा लेने की भावना जाग्रत होती है.पति के बलिदानों पर स्त्रियां फ़ख्र करती हैं और अपने पतियों के स्थान पर सेना में भर्ती होकर वे ख़ुद भी मैदान-ए-जंग में उतरना चाहती हैं.
जब बेटे का शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ आता है, तो भारतीय मांएं गौरवांवित होती हैं और कहती हैं कि उसके स्थान पर अपना दूसरा बेटा-बेटी या पोता-पोती भी बलिदान कर देंगीं.उनकी वीरगति पर वे आंसू भी नहीं बहातीं क्योंकि यही भारतीय परंपरा है.आंसू बहाने या शोक करने से बलिदानी के बलिदान का अपमान होता है.
सैन्य भाव अंतरात्मा का सहज भाव होता है, जिसका सौदा नही किया जा सकता.सैन्य कार्य को अनुबंधों में बांधने की कोशिश भी युवाओं को पथभ्रष्ट करने का कार्य है.
अग्निपथ योजना जो कि टूर ऑफ़ ड्यूटी है, इसके तहत चार सालों का क़रार महान भारत की गौरवशाली परंपरा के विरुद्ध षड्यंत्र जैसा है.
 
 

कामकाज होगा प्रभावित, चरमरा जाएगी सैन्य-व्यवस्था

कहते हैं कि जल्दी का शैतानों का होता है, इंसान इत्मीनान से और सोच-समझकर काम करते हैं.हमारी सरकार के लिए भी ज़रूरी था कि पहले वह गहन चिंतन-मनन करती, अग्निपथ योजना को बतौर पायलट प्रोजेक्ट लाती और आजमाती.उसके बाद, इसे आगे बढ़ाती, तो सेना और देश का भला होता और वह फ़जीहत से भी बच जाती.मगर जल्दबाजी में लाई गई यह योजना ऐसी है कि जिसके कारण सेना का कामकाज तो प्रभावित होगा ही, इसकी व्यवस्था भी चरमरा जाएगी.
 

सैन्य-क्षमता व कार्यकुशलता में आएगी कमी

आगे आने वाले दिनों में सेना में अग्निवीर नामक ऐसे लोगों की भरमार होगी, जिनके कुल चार सालों के कार्यकाल में से छह महीने ट्रेनिंग में निकल जाएंगें.बचे सिर्फ साढ़े तीन साल, जिसमें छुट्टियां आदि भी शामिल हैं.इन सब को निकाल दें, तो क़रीब दो साल ही रह जाते हैं कामकाज के लिए.अब इन दो सालों में अग्निवीर कौन-सी क्षमता विकसित कर पायेंगें? इतनी अल्प अवधि में अग्निवीर कैसे कोई ख़ास तकनीक, कठिन परिस्थितियों से लड़ने के गुर सीख और अपने अंदर विकसित कर पाएंगें, जबकि इस बीच कम-से-कम उनकी दो स्थानों पर तैनाती होगी जहां की भौगोलिक परिस्थितियों को ठीक से समझने और ख़ुद को ढालने में वक़्त लगता है?
ज्ञात हो कि थल सेना में सिपाही, वायुसेना में एयरमैन और नौसेना में नाविक की कम-से-कम एक साल की ट्रेनिंग होती है.उसके बाद उसे क़रीब पांच-छह साल लग जाते हैं एक मुकम्मल सैनिक बनने में.इस दौरान वह विभिन्न आपरेशनों में भाग लेता है, अपने सीनियर की सुझबुझ और उसके दांव-पेच को देखता है, उसके जज़्बे को देखता और समझता है, तो उस पर इसका असर होता है, उसमें एक विशिष्ट भावना बलवती होती जाती है.
 
आग की भट्टी में जैसे लोहा तपता है वैसे ही सैनिकों को तपाकर फ़ौलाद बनाया जाता है.इसमें समय लगता है और यह दो सालों की अवधि में मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.इतने समय में तो समर नीति या सेना का प्रारंभिक ज्ञान और उसका कठिन अभ्यास भी पूरा नहीं हो पाता है, एक मुकम्मल सैनिक बनना तो दूर की कौड़ी है.
ऐसे में, अग्निवीर नामक रंगरूट या नौसिखियों से काम नहीं चल पायेगा.ख़ास कार्यों, महत्वपूर्ण आपरेशनों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए ज़िम्मेदार सब-यूनिट और यूनिट कमांडरों को अग्निवीरों कि जगह नियमित/स्थाई कैडर सैनिकों से काम लेना होगा, जो पहले ही काम के बोझ तले दबे होंगें.इससे सेना की क्षमता व कार्यकुशलता पर असर पड़ेगा.

हीनता, नकारात्मक प्रतिस्पर्धा

अग्निवीर नियमित कैडर के सैनिकों के आगे ख़ुद को छोटा या उनसे नीचे रैंक का जवान समझेंगें, जो कि वास्तव में वे हैं भी मगर, परिभाषित नहीं किए हैं.दूसरी ओर नियमित/स्थाई सैनिकों को भी पता होगा कि उनमें से तीन चौथाई बैरंग चिट्ठी की तरह लौट जाएंगें.कौन रहेगा-आगे बढेगा और कौन वापस जाएगा यह पता नहीं होने के कारण उनमें वे दिलचस्पी नहीं लेंगें.यह भावना, उनमें तालमेल नहीं बनने देगी, जो सैन्य-भाव के विरुद्ध  और घातक भी है.
 
ज्ञात हो कि एक स्थाई सैनिक अपने प्रदर्शनों के मूल्यांकन में पीछे रह जाता है, वह पास नहीं होता है यानि उसकी पदोन्नति नहीं भी होती है तब भी उसकी सेवा 15 सालों तक बरक़रार रहती है.वह ग्रेच्युटी, पेंशन, आजीवन मेडिकल सुविधा और अन्य लाभों के साथ वह रिटायर होता है.दूसरी तरफ़ अग्निवीरों के अंदर एक अनिश्चितता की स्थिति बनी रहेगी, एक द्वन्द-सा बना चलता रहेगा कि पता नहीं कि रहेंगें या जाएंगें.ऐसे में, एक नकारात्मक प्रतिस्पर्धा यानि एक दूसरे को पीछे धकेलने, नीचा दिखाने की भावना उनमें जागेगी या घर कर जाएगी, जो सेना के संस्कारों-नियमों के विरुद्ध है.इससे सेना में अनुशासनहीनता फैलेगी, जो इसकी क्षमता और कार्यकुशलता पर असर डालेगी.
 
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अग्निवीरों के मन में त्याग और बलिदान की वह भावना नहीं रहेगी, जो सैनिकों की पहचान होती है.वे जंग को लेकर इस पसोपेश में रहेंगें कि वे शामिल हों या न हों.अपने प्राणों की आहुति क्यों दें जब वे एक पूर्ण सैनिक ही नहीं हैं, ऐसा वे सोच सकते हैं.वास्तव में यदि ऐसा भी है, तो हमारी सेना के लिए बहुत दुखद विषय है.
 
ये तो हुई सेना में रहते हुए अग्निवीरों और सेना की बातें.सेना से बाहर आने के बाद क्या होगा, इस पर भी विचार करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि युद्धकला से परिचित, शारीरिक-मानसिक रूप से सक्षम और आज़ाद ख़याल लोग ऐसे समाज में रहने आएंगें जहां कई तरह की समस्याएं और विविधताएं हैं.यहां अच्छे लोगों के साथ-साथ बुरे लोग भीं हैं, अपराधी-माफिया भी हैं और समाजविरोधी-देशविरोधी लोग भी रहते हैं.यहां अग्निवीर ख़ुद को फिर से स्थापित करने की जद्दोजहद में किस ओर रुख़ करेंगें, इस पर सोचना भी ज़रूरी है.
 
 

अपराध, नक्सलवाद-आतंकवाद को मिलेगा बढ़ावा

देश में पहली बार ऐसा होगा जब सेना से बाहर आए सैनिक या अग्निवीर के पास न तो रैंक (भूतपूर्व सैनिक का पद या सम्मान) होगा और न ही पेंशन.यानि नो रैंक नो पेंशन वाली कैटेगरी के ऐसे लोग, जो सेना से जुड़े रहे हैं.उनके पास धन के रूप में 10-12 लाख रुपए तो होंगें मगर इस महंगाई के दौर में आगे पूरी ज़िंदगी भी पड़ी होगी, घर-परिवार की ज़िम्मेदारियां भी होंगीं और अच्छे-बुरे हालात भी होंगें जूझने के लिए.
 
मनोविज्ञान कहता है कि ज़िंदगी के बहुमूल्य समय और उर्जा पहले सेना में नौकरी की तैयारी में और फिर सेना की चार साल की संघर्षपूर्ण नौकरी में खपाने के बाद ऐसे विरले ही होंगें, जो कठिन और चुनौतिपूर्ण लगने वाली राह फिर से पकड़ सकेंगें.अब तो वे आसान और जल्दी एटीएम तक पहुंचाने वाली राह की ओर अग्रसर होंगें, जो उनकी ज़रूरतें और सपने पूरे करने वाली लगती होगी.वे बहक सकते हैं.
 
अगर वे चाहें भी तो सीधे तरीक़े से अपनी ख़्वाहिशों की मंजिल पा सकते हैं क्या? यह कहना बहुत मुश्किल है.
 
वो चाहे कोई सॉफ्टवेयर कंपनी हो या नमकीन-भुजिया बनाने-बेचने वाली एक इकाई-कंपनी हो, वह किसी ऐसे व्यक्ति को नौकरी क्यों देगी, जो गलाकाट प्रतियोगिता और झूठ-फ़रेब की तकनीक से लैस न होकर सच्चाई, ईमानदारी, देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत और ख़ासतौर से लड़ने-भिड़ने में भी माहिर हो? हां, इन्हें सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिलनी तय है.
 
सरकारी नौकरियों का हाल किसी से छुपा नहीं है.ऐसे में बहुत संभव है कि अग्निवीर ग़ैर-सामाजिक राह अपना सकते हैं.
 
नौकरी की मंडियों मनपसंद जगह पाने में विफल अग्निवीर देशी-विदेशी सैन्य ठेकेदार निगमों, विद्रोही, आतंकवादी या सांप्रदायिक संगठनों से जुड़ सकते हैं, उनके लिए भाड़े के सैनिक के रूप में काम कर सकते हैं.
 
 

अपराध की दुनिया में दाख़िल हो सकते हैं अग्निवीर

शरीर से मजबूत, दिमाग से चौकन्ने और हथियार चलाने के जानकार-माहिर अग्निवीर अपराधी गैंग की पहली पसंद होंगें.अग्निवीर ख़ुद का भी गैंग बना सकते हैं.हर तरह से प्रशिक्षित और समर्थ ये इतने ताक़तवर और ख़तरनाक बन सकते हैं कि इन्हें काबू करना हमारे पुलिस बलों के बूते के बाहर की बात होगी.नतीज़तन, बेख़ौफ़ होकर ये खौफ़ पैदा कर देंगें.समाज में चारों तरफ़ अराजकता का माहौल होगा और लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा.
 
 

नक्सली-खालिस्तानियों के काम आएंगें अग्निवीर 

देश के भीतर और सीमावर्ती क्षेत्रों में नक्सलवाद बढ़ावा मिलने के कारण इसका विस्तार हो रहा है.सिख आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है.फिर से खालिस्तानियों की भर्तियां हो रही हैं और संगठन मजबूत हो रहे हैं.इनके पास ख़ुद का बेशुमार धन तो है ही, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों से भी इन्हें आर्थिक मदद मिल रही है.
 
आर्थिक और सियासी तौर पर मजबूत/समर्थित खालिस्तानी अपने सांगठनिक विस्तार और अपने आतंकी मंसूबों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर पैसा आतंकियों की ट्रेनिंग और उन्हें तैयार करने में लगाते हैं.मगर, इसमें समय लगता है.
 
ग़ौरतलब है कि अब सिख आतंकी संगठनों को सिर्फ़ पैसे ख़र्च करने होंगें, उन्हें अग्निवीर के रूप में रेडीमेड ऐसे लोग मिलेंगें, जो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगें, उनका वह सारा काम करेंगें, जिससे उनके मंसूबे पूरे हों.
 
 

इस्लामिक आतंकी-जिहादी संगठनों का होगा विस्तार

यह किसी से छुपा नहीं है कि किस तरह बस भड़काने भर की देर होती है, मुस्लिम युवा सड़कों पर उतर आते हैं और अराजकता का माहौल बन जाता है.यह मदरसों की शिक्षा, कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं और मौलाना-मुफ़्तियों की शह और ऐलान या नारों का कमाल होता है.
 
देश में जगह-जगह जिहादी पॉकेट बन चुके हैं, गजवा-ए-हिन्द यानि भारत पर इस्लामी झंडा फ़हराने और यहां शरिया कानून स्थापित करने की तैयारी चल रही है.ऐसे में, जिहादियों के साथ मुस्लिम समुदाय से आने वाले हमारे अग्निवीर भी शामिल हो गए, तो स्थिति कैसी बनेगी/बन जाएगी, यह समझना कठिन नहीं है.
 
भारत के ख़िलाफ़ जंग में शामिल होने के लिए युवकों को ट्रेनिंग लेने अब सीमापार जाने की ज़रूरत नहीं होगी, मोदी सरकार ने यहीं ऐसी व्यवस्था कर दी है जिसमें प्रशिक्षण के साथ-साथ तनख्वाह भी मिलेगी.साथ ही, जब वे सेना से बाहर आएंगें, तब 10-12 लाख रुपए भी मिलेंगें आतंकी वारदातों को अंज़ाम देने के लिए.
 
वैसे भी सेना से निकले या निकाले गए अग्निवीर घर पर बैठे करेंगें क्या? गिद्ध दृष्टि जमाए जिहादी संगठन जन्नत और उसकी हूरों के लिए ललचायेंगें और ये बड़ी आसानी से उनके जाल में फंस जाएंगें.
 
जिहादी संगठन दो तरह का काम कर सकते हैं.पहला, वे ख़ुद ही युवाओं को प्रेरित और फंडिंग करेंगें अग्निवीर बनने के लिए, जिस तरह वे मदरसों में करते हैं.दूसरा, फौज से लौटे अग्निवीरों को मज़हबी ज्ञान और धन देकर अपने साथ जोड़ेंगें.
 
ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण होगा जब अग्निवीर भारत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलेंगें.
 
सेना द्वारा प्रशिक्षित, विभिन्न आपरेशनों का अनुभव रखने वाले और सैन्य ठिकानों से परिचित अग्निवीर सेना के ख़िलाफ़ सेना के ही दांव-पेच इस्तेमाल करेंगें.कितना मुश्किल होगा उन्हें क़ाबू करना, ये किसी ने सोचा है?
लगता है कि बेकार ही आईएसआईएस दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक, कश्मीर, पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार में युवाओं को प्रेरित करने और अपने सांगठनिक विस्तार में पैसा पानी की तरह बहा रहा है.यह सब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद ही शुरू हो गया था और अब इसमें हाल के दिनों में तेज़ी देखने को मिली है.मगर, तब शायद उन्हें यह पता ही नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी के नेतृव में बीजेपी की सरकार जल्द उनकी राह आसान करने वाली है, उनके तंबुओं में पहुंचकर जिहादी बनने वाले लोग अग्निवीर के रूप में उन्हें थाली में परोसकर देने वाली है.
अग्निपथ योजना, सेना के ख़िलाफ़, देश विरोधी
आईएसआईएस (प्रतीकात्मक)
ज्ञात हो कि पिछले साल ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य ख़ुफ़िया संस्थाओं ने मोदी सरकार को आगाह किया था कि आईएस दक्षिण भारत के जंगलों में प्रशिक्षण शिविर, लॉन्चिंग पैड आदि स्थापित करने के साथ-साथ आत्मघाती दस्ते भी तैयार करने की योजना पर काम कर रहा है.अपनी रिपोर्ट में इन्होंने यह भी बताया था कि आईएसआईएस से जुड़े अल-आज़म मीडिया फाउंडेशन ने ‘द मोबाइल बम’ नामक किताब जारी की है, जिसमें कम ख़र्च में, जल्दी और आसानी से विभिन्न प्रकार के विस्फोटक तैयार करने की विस्तृत जानकारी दी गई है.ऐसे जिहादी साहित्य भी बांटे गए हैं जिनमें काफ़िरों को ख़त्म करने की बात कही गई है.

अग्निपथ योजना- एक राजनीतिक फ़ैसला

अग्निपथ योजना एक कोरा राजनीतिक फ़ैसला है.दरअसल, विभिन्न मोर्चों पर असफल मोदी सरकार की ओर से अपनी दरकती ज़मीन को बचाने और वोटबैंक साधने के लिए यह महज़ एक राजनीतिक शिगूफ़ा है.
अग्निपथ योजना का उद्देश्य न तो सामाजिक-आर्थिक सुधारों का है और न युवाओं को रोज़गार देने की ही कोई मंशा है.यह युवा वोटरों को लुभाने के लिए फेंका गया एक जाल है, जिसमें सेना की गरिमा कम करने और इसके परंपरागत ताने-बाने को ध्वस्त करने के तमाम लक्षण मौजूद हैं.
ज्ञात हो कि दुनिया के 168 देशों की आबादी से ज़्यादा हमारे यहां केवल पांच राज्यों में युवा वोटर हैं.देशभर में 18 से 35 साल के युवा मतदाताओं की संख्या क़रीब 33 करोड़ है.इस हिसाब से देखें तो ये सरकार के लिए काफ़ी मायने रखते हैं मगर, हक़ीक़त यह है कि इन्हीं के साथ छल हो रहा है.
ग़ौरतलब है कि इस योजना के तहत चार सालों में एक लाख 86 हज़ार अग्निवीरों की भर्ती होगी, जबकि क़रीब 8 फ़ीसदी (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी- CMIE के अनुसार) बेरोज़गारी दर के सामने यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है.
यानि एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा.यह योजना सेना, समाज और देश के लिए गंभीर समस्याएं पैदा करने वाली है.
 
बहरहाल, अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं की ओर ही आपत्ति-विरोध नहीं है, बल्कि भूतपूर्व सैनिकों-रक्षा विशेषज्ञों ने भी दोषपूर्ण नुकसानदेह बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है और इसे वापस लेने की मांग की है.
 

पूर्व सैनिकों, रक्षा मामलों के जानकारों ने जताई चिंता

हमारे पूर्व सैनिकों, रक्षा मामलों के जानकारों ने अग्निपथ योजना को लेकर अलग-अलग मंचों से अपने विचार प्रकट किए.उन्होंने कई ऐसी बातें बताई, जो बेहद गंभीर व चिंताजनक हैं.इन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता.
 
कर्नल (रिटायर) यूएस राठौर ने कहा कि इस योजना का हमारी सेनाओं पर कितना असर होगा, दुर्भाग्यवश इसका किसी ने आकलन ही नहीं किया है.
 
कर्नल राठौर ने कहा-
 
” कहा जा रहा है कि इस योजना के तहत 2032 तक भारत की सशस्त्र सेनाओं में आधे अग्निवीर होंगें.ऐसे में, जूनियर लीडरशीप के सामने एक बहुत बड़ी चुनौति होगी, जिस पर लोगों ने विचार ही नहीं किया है.अग्निवीर आएंगें और चले जाएंगें, निरंतरता नहीं रहेगी, जबकि इसमें ज़िंदगी और मौत का सवाल होता है.लीडरशीप को हल्के में नहीं लिया जा सकता.यह सोचना ग़लत है कि आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में लोग आएंगें और चार साल में दक्ष हो जाएंगें.
 
यह विचार करना ज़रूरी है कि ऐसे लोगों से कैसा काम लिया जाएगा क्योंकि अग्निवीर का पोस्ट सेनाओं के सिपाही, नाविक और एयरमैन होते का पोस्ट नहीं, बल्कि इससे नीचे का पोस्ट है.यह एक नया पोस्ट बनाया गया है.
 
ऐसे लोगों की क्षमता 50 फ़ीसदी हो जाने से कैसे चलेगी सेना? कैसे बनेगी वॉर एस्टेब्लिश्मेंट टेबल (युद्ध स्थापना सारीणी)? जूनियर लीडरशीप का क्या सरोकार है इस व्यवस्था में?
 
कैसे चलेगा जब ये ही जूनियर कमीशन अफ़सर, ये ही नॉन कमीशन अफ़सर होंगें, इन्हें ही लेकर एम्बुश (अचानक हमले) में जाएंगें, पेट्रोलिंग करेंगें और अटैक में जाएंगें? कैसे इनसे सीआई ऑपरेशन में कॉर्डन सर्च करवाएंगें? ”
कर्नल राठौर ने कहा कि सरकार और उसके अमलों का पूरा ध्यान दरअसल, इस ओर नहीं, बल्कि कहीं और लगा हुआ है.वे अपनी सारी उर्जा सेल्स पिच (विक्रय-वार्ता, सौदा पटाने की कोशिश) पर खपा रहे हैं, और बाहर निकलने के बाद क्या होगा, यह अग्निवीरों को समझा रहे हैं.
मेजर जनरल (रिटायर्ड) जेपी सिंह ने कहा-
” मुझे कोई कहे कि अपने बेटे-बेटी को सेना में अग्निवीर बनने के लिए भेजो, तो मैं नहीं भेजूंगा.यह मैं बहुत सोच-समझकर कह रहा हूं, क्यों कह रहा हूं, इस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.यह भी विचार करने का विषय है कि आर्मी कोई केवल पेट्रोलिंग करने, मारने और बॉर्डर पर खड़ी करने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि यह तकनीकी रूप से लैस और दक्ष समूह या संस्था है, जिसे खड़ी करने में समय, और बहुत उर्जा लगती है.दो सालों में अग्निवीर कौन-सा टैंक या मिसाइल चला लेंगें?
मिसाल के तौर पर, हमारे पास जो टी 90 टैंक हैं, रूस में उन्हें ऑफसेट द्वारा चलाया जाता है.इसके लिए उनके पास ऑफसेट क्रू है, जबकि हमारे यहां यह हमारे जवान चलाते हैं.इसके लिए कितनी तैयारी करनी होती है, कितना समय लगता है, इस पर सोचना ज़रूरी है.
अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीरों को जो समय मिलेगा, उतने समय में वे यह सब नहीं कर सकते.तकनीकी रूप में वे उस तरह से तैयार नहीं हो सकते, जैसा उन्हें बनने की ज़रूरत है. ”
मेजर जनरल सिंह ने आगे कहा-

” चार सालों में आप  जितना अग्निवीरों पर ख़र्च कर रहे हैं, जितना भी उन्हें तैयार कर पाते हैं, उसका सदुपयोग अर्धसैनिक बलों में कीजिए.बाहर उन्हें नए क्षेत्रों में क़िस्मत आजमाने या धक्के खाने के लिए मत भेजिए.इसके भयंकर दुष्परिणाम होंगें. ”

रक्षा विशेषज्ञ पीके सहगल ने कहा-
” चार सालों बाद जब अग्निवीर सैन्य बलों से बाहर आएंगें, तो उनमें निराशा छा जाएगी.बदले हालात में उनके पास अच्छे विकल्प मिलने की संभावनाएं बहुत कम हैं.
 
जो रास्ता अग्निवीर चुन सकते हैं, उससे समाज और देश के लिए समस्याएं तो खड़ी होंगीं ही, सेना के लिए भी वे चुनौति बन जाएंगें. ”
रक्षा विशेषज्ञ सहगल ने कहा कि सरकार पहले इन सब बातों पर गंभीरता से विचार करे.उसके बाद आगे बढ़े या फिर इस योजना को वापस ले ले.
रक्षा विशेषज्ञ कर्नल (रिटायर्ड) दिनेश नैन ने कहा-
” देश को जिस तरह पाकिस्तान और चीन से खतरा है, उसमें रक्षा और ज़वाब देने की स्थिति में बने रहने के लिए केवल मशीनों से ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगें.उसके लिए प्रशिक्षित एवं अनुभवी सैनिकों की पर्याप्त संख्या भी ज़रूरी है.मगर, दुर्भाग्य से सरकार सैनिकों की संख्या घटाने की दिशा में काम कर रही है.वह अग्निपथ योजना के तहत ऐसे सैनिकों की भर्ती कर रही है, जिनमें से 75 फ़ीसदी अल्पकाल में ही बाहर हो जाएंगें और ज़रूरत के वक़्त वे नदारद रहेंगें.इसे क्या कहेंगें?
 
दरअसल, ‘आइएएस लॉबी’ है, जो सेना की संरचना के ख़िलाफ़ काम कर रही है और राजनेता इसे समझ नहीं पा रहे हैं.दुर्भाग्य यह है कि सेना का स्तर गिराने का जो दुष्चक्र 1947 में शुरू हुआ था, वह अब भी जारी है.एक बार फिर सेना की संरचना और मूल भावना के ख़िलाफ़ काम हो रहा है. ”
कर्नल दिनेश नैन ने आगे कहा-
” हमारी सेना रोज़गार नहीं है.राजनेताओं से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे इसे रोज़गार के नज़रिए से देखना बंद करें.
 
भारतीय सेना न सिर्फ़ दुनिया की सबसे क़ाबिल व वफ़ादार सेना है, बल्कि इसकी एक अलग ही पहचान है.यह स्वार्थों से परे त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति है.हम पैसों के लिए नहीं, बल्कि देश और अपनी माटी के लिए लड़ते हैं, और अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए सदा तैयार रहते हैं. ”
मेजर जनरल (रिटायर्ड) हर्ष कक्कड़ ने कहा-
” अग्निपथ योजना को लेकर सवाल अधिक हैं और ज़वाब कम.इसे पहले एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लाना चाहिए था, जिसकी बाद में समीक्षा की जा सकती.लेकिन, अभी इसे सेना पर ज़बरदस्ती थोपा जा रहा है. ”
मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी ने कहा-

” मुझे लगा कि इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू किया जा रहा है.ऐसा लगता है कि ये चीन की तरह सेना में कम अवधि की नियुक्तियों के लिए किया जा रहा है.भगवान के लिए ऐसा ना करें. ”

जनरल बख्शी ने आगे कहा-

” सेना की कार्यकारी क्षमता को अकाउंटेंट की कलम से ना लिखा जाये.ये रिवेन्यू बजट में पैसे बचाने के लिए किया जा रहा है. ”

जनरल बख्शी ने फिर बड़े साफ़ लहज़े में कहा-

” एक कारगर संस्था को पैसे बचाने के लिए नष्ट ना करें.डिफेंस बजट को कृपया जीडीपी से ना तौलें. ”

अब बाक़ी क्या रह जाता है, कहने-सुनाने को.सब कुछ बिल्कुल आईने की तरह साफ़ और नीम की तरह कड़वा है, भले ही कोई समझे या ना समझे.
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस के शब्दों में कहें, तो सरकार यह सब इसलिए कर रही है क्योंकि वह पेंशन बिल और सैलरी बिल बचाना चाहती है.इसे लेकर लोगों में नाराज़गी है क्योंकि एक तरफ़ सरकार कहती है कि फ़ौज देश की रक्षा करती है और दूसरी तरफ़ युवाओं को अल्पावधि की नौकरी दी जा रही है, ताकि सरकार पैसे बचा सके.निश्चित रूप से सरकार पैसा बचाने की कोशिश कर रही है.
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रामाशंकर पांडेय

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